मंज़िल Arpit Gupta
मंज़िल
Arpit Guptaचल-चल के इन राहों में,
छाले आए हैं पाँवों में।
राह-ए-मंज़िल दिख रही है,
दूर पीपल की छावों में।
थक गया हूँ रूक गया हूँ,
थोड़ा सा मैं झुक गया हूँ।
कोशिशों को देख मेरी,
अब ये मंज़िल कह रही।
आ रहा है तू की तेरे,
पास ख़ुद ही आऊँ मैं।