बस यूँ ही बदनाम है तू ज़िन्दगी  Chhavi Verma

बस यूँ ही बदनाम है तू ज़िन्दगी

Chhavi Verma

बस यूँ ही बदनाम है तू ज़िन्दगी इतनी भी बुरी नहीं।
 

माना वक़्त-वक़्त पर हारा सा महसूस करा देती है,
पर बेवक्त ही सही जीत का चेहरा भी तो दिखा देती है।
 

इंसान तुझे समझने में नाकाम ही रहा है,
इसने तो हर बोझ तुझपे जा मढ़ा है।
 

सबके हिस्से की खुशियाँ सबको देती तू रही,
अब खुशियों को पहचान ना हमको अगर आया नहीं,
तो कैसे भला तू गलत और हम सही।
 

तू तो वह खेल है जिसमें सबकी जीत हो,
पर दूसरों की हार में लगे हैं हम सभी।
 

तू तो वो सफर है जिसकी कोई मंज़िल नहीं,
पर बस मंज़िल की यहाँ दौड़ है सफर का लेता कोई मज़ा नहीं।
 

बस खामखां बदनाम है तू ज़िन्दगी इतनी भी बुरी नहीं।

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