बचपन APOORVA SINGH
बचपन
APOORVA SINGHकभी-कभी सोचती हूँ
काश वो बचपन लौट आता,
जो था रिश्ता दोस्तों से
वो अपनापन लौट आता।
खेला था जिस बाग में
वो चमन लौट आता,
तैराई थी जिसमें नाव अपनी
वो पानी लौट आता।
भीगती थी सखियों संग
वो मौसम लौट आता,
सोई थी जिस गोद में
वो आँचल लौट आता।
उठते थे जब स्कूल के लिए
वो सवेरा लौट आता,
खेला था घर-घर जब
वो ज़माना लौट आता।
मिट्टी के गुल्लक में जमा
वो खज़ाना लौट आता,
कभी-कभी सोचती हूँ
वो बचपन लौट आता।