वरदान माँगना नहीं  Anshita Rana 'Trupti'

वरदान माँगना नहीं

Anshita Rana 'Trupti'

तू सत्यपथ का प्रहरी बन,
तू कालजय अग्र धनिक बन,
ना टूटना ना हारना
असत्य पर झुकना नहीं,
वरदान माँगना नहीं।
 

तू अगर सत्य का है पथिक
तू है प्रिय गुरू का अधिक,
फिर कहीं रुकना नहीं
समक्ष कहीं झुकना नहीं,
वरदान माँगना नहीं।
 

डिग जाए आसन शंभु का
पी ले हलाहल जग सिन्धु का,
व्यर्थ व्यथित होना नहीं
पथ में कभी सोना नहीं,
वरदान माँगना नहीं।
 

जो राह पकड़े सत्य की
परवाह ना करे अपथ्य की,
चलता रहे जो निज मस्ती में
रमता नहीं दिग् हस्ती में,
उसके लिए पुरुषार्थ है
वो कर रहा परमार्थ है।
 

तू सहायता ना माँगना
सीमा कभी ना उलाघना,
बस बहुत हुआ निर्मम प्रहार
अब ना हस्त पसारना,
भाग्य को न निहारना,
झुकना नहीं, थमना नहीं,
वरदान माँगना नहीं।

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