लाशें गल गईं!  SHRIYANSH SRIVASTAVA

लाशें गल गईं!

SHRIYANSH SRIVASTAVA

उनका क्या हुआ?
लाशें मिलीं के नहीं?
हैं भी या घुल गयीं
नसों सी बिखरी
पतली उन खदानों में।
 

क्या कोई और ज़िम्मेदार है
या सिर्फ गरीबी,
क्या किसी को खबर है
उन ऊँचे गलियारों में,
सत्ता के बाज़ारों में
मद में चूर समझदारों में।
 

कौन ले गया था वहाँ
उस मौत के कुँए में,
किसका दोष देना है
जल्दी तय करो,
अखबारों में छापो।
 

नहीं ये सरकार की गलती
बिलकुल भी नहीं थी,
वो स्वयं गए थे
खतरों के खिलाड़ी,
हम क्या करें वो थे अनाड़ी।
 

सरकार समर्थ है
मनरेगा था उनके पास,
था बहुत सारा रोज़गार
पता नहीं कैसी भूख है पब्लिसिटी की।
 

बिना बताए खदान में घुस गए! नो कैमेरा ?
इतने पैसे और समर्थन के बाद
खेती में तो मुनाफा बहुत हुआ,
आय भी दोगुनी होने वाली थी
फिर क्यों गए थे काला सोना ढूँढने? लालची !
 

ख़बर आ गई
लाशें नहीं निकल पाएँगी,
राष्ट्र शोकाकुल है,
हर परिवार को लाखों मुआवज़ा
और श्रीमंत्रीजी की सहानुभूति
कैमरे के सामने सम्मान सहित मिलेगी।
 

सरकार निर्दोष निष्कलंक है
सरकार तो फ्री में लाशें तलाशती है,
अब गल गयीं तो कोई क्या करें
कुदरत से थोड़े लड़ सकते हैं,
कुदरत कोई चुनाव थोड़े है
जुमला बाँट के जीत ली जाए,
जात छाँट के बीन ली जाए।
 

हम शोक व्यक्त करेंगे,
श्रद्धांजली देंगे,
आगे का इंतज़ाम नहीं देखेंगे
हर बात का ऐलान करेंगे,
ढोल पीट के फर्जी संग्राम करेंगे।
भारत माँ की जयकार ज़रूरी है,
ये पूरा माहौल ज़रूरी है,
आखिर चुनाव की मजबूरी है।
 

जो बच गया अगली बार होगा
वोट दो ! पांच साल में चमत्कार होगा,
अत्यंत घनघोर खुला व्यापार होगा,
गरीब थोड़ा और लाचार होगा।
चिंता मत करो !
हम गरीब और गरीबी दोनों भगाएँगे,
कभी कमल कभी गुलाब कभी हाथ लहराएँगे,
वोट दो ! हम तुम्हे फिरसे बेवक़ूफ़ बनाएँगे।

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