मैं एक वृक्ष हूँ Dr. Shachi Negi
मैं एक वृक्ष हूँ
Dr. Shachi Negiमैं एक घना हरा-भरा वृक्ष हूँ,
कहने को सिर्फ चंद पत्तों का झुरमुट ही तो हूँ,
पर मानो -
मानो तो पूरा ब्रह्माण्ड हूँ।
मुझमें सैंकड़ों दुनिया बसती हैं,
कई दिखतीं हैं, कई छुपी हैं मुझमें,
मैं कई जीवों का बसेरा हूँ,
घनी बस्तियाँ हैं, कई पक्षियों की मुझमें।
मुझ पर गिलहरियाँ फुदकती हैं,
चिड़ियाँ कलरव करती हैं,
मेरी डालियों पर कई जीव मँडरातें हैं,
खेलतें हैं, कूदते हैं, बड़ा इतरातें हैं।
चींटों के कई झुण्ड हैं मुझमें,
कीटों के कई अंश हैं मुझमें,
रंग-बिरंगी चिड़ियाँ मुझमें,
कई सतरंगी तितलियाँ मुझमें।
मेरा ना कोई दायरा है
ना छोर ही है,
मेरी गगनचुम्बी ऊँचाई भी है
और विस्तृत गहराई भी,
फैला हूँ चहु-दिशाओं भी,
मैं जितना ऊँचा हूँ बाहर,
उतना गहरा भी हूँ अंदर।
मैं साक्षी हूँ कितने ही मौसमों का,
सर्दी की ठिठुरन का,
गर्मी की झुलसन का।
मैंने ना जाने कितनी ही बरसातें देखीं हैं,
कितने ही बचपन को बढ़ते,
बुढापों को ढलते देखा है।
ना जाने कितने तूफानों से गुज़रा हूँ मैं,
एक अरसे से,
एक अरसे से, फिर भी खड़ा हूँ मैं।
मैं एक घना हरा-भरा वृक्ष हूँ,
कहने को सिर्फ चंद पत्तों का झुरमुट ही तो हूँ,
पर मानो -
मानो तो जीवंत हौसलों का प्रमाण हूँ,
मानो तो जीवन का आधार हूँ,
मैं, एक घना हरा-भरा वृक्ष हूँ।