पतझड़ मे बसंत  Ashutosh kumar jha

पतझड़ मे बसंत

Ashutosh kumar jha

प्रकृति का देखो कैसा उपहार
पतझड़ को देती बसंत बहार,
सावन को मूसलाधार,
शरद को ओसो की फुहार,
प्रकृति का देखो कैसा उपहार।
 

हर रूप में करता श्रृंगार,
नभ थल जल की पुकार,
प्रकृति से बंद हो खिलवाड़,
एक-एक पेड़ जीवन का आधार,
प्रकृति का देखो कैसा उपहार
पतझड़ को देती बसंत बहार।
 

जीवन हरा करो बंद हो व्यापार,
सुरक्षित करो नदी जंगल पहाड़,
पशु-पक्षी और मानव का आधार,
प्रकृति के तीन अंगों का उपहार,
संरक्षित करने को सब हो जाओ तैयार,
प्रकृति का देखो कैसा उपहार,
पतझड़ को देती बसंत बहार।

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