मैंने तो प्रेम जिया है ARCHIT SHARMA
मैंने तो प्रेम जिया है
ARCHIT SHARMAवह समय बड़ा ही निर्मम था
कितना ही पश्चाताप रहा,
वो दाग तुम्हारे आँचल पर
जीवनभर अपने आप रहा।
हाँ पाने को मृदु मंजरियाँ
कंटकमय पथ पर चला गया,
पीकर के सुमन सुधाजल को
कितना भवरों से छला गया।
आशा में सुमन सुधाजल की
जीवन भर गरल पिया है,
तुमने तो प्रेम किया होगा
मैंने तो प्रेम जिया है।
जितना ज़्यादा सामिप्य रहा
उससे भी ज़्यादा दूर हुए,
जो स्वप्न सजे थे जीवन भर
वह सपने चकनाचूर हुए।
उन स्वप्नों की परछाई पर
मैं अपना सबकुछ हार गया,
पीड़ा से भरे सरोवर में
इस पार गया उस पार गया।
बदले में पूर्ण समर्पण के
मैंने अभिशाप लिया है,
तुमने तो प्रेम किया होगा
मैंने तो प्रेम जिया है।