वजह तुम हो  Dhruvi Shailesh Dudhatra

वजह तुम हो

Dhruvi Shailesh Dudhatra

न रंग था न रूप ज़िन्दगी का,
न खुशियाँ थी ज़िन्दगी में,
पर अब तो हर हँसी की वजह तुम हो।
 

दुनिया कुछ ऐसी थी
और कुछ तो थी मेरी बेखुदी,
कि तक्कलुफ़ और ज़िन्दगी का फलसफा,
बस इन्हीं दो चीज़ों ने घेर रखा था मुझे,
पर अब तो आईने में देखने की वजह तुम हो।
 

सब्र कुछ ज़्यादा ही था,
या यूँ कहो कि कुछ पाने की सारी उम्मीद टूट गई थी,
पर अब तो बेसब्री की वजह तुम हो।
 

लोगों की बेवफाई देखके, उनके साथ रहके मुर्झा गई थी,
फिर मोहब्बत करने के ऐतराज़ को
खुद मे पाल कर बैठी थी,
पर अब प्यार करने की वजह तुम हो।
 

इंसानों की निगाहों में बस नफरत है,
कुछ ऐसा ही तजुर्बा था मेरा,
जो मुझे मंज़ूर नहीं था, शायद इसलिए,
उनसे फिर कभी नज़रें मिलाई ही नहीं।
आज किसी की आँखों में ऐतबार देखके
बस एक सपना सा लगता है,
पर अब उस हकीकत को देखने की वजह तुम हो।
 

जी रही थी, बस जी रही थी यह सोच के 
की अभी ज़िंदा हूँ,
दिन से रात ,रात से दिन कब होता क्या मालूम था,
न समय की कीमत थी न रौशनी की,
पर अब सूरज-चाँद को देखने की वजह तुम हो।

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