आँसू  SHRIYANSH SRIVASTAVA

आँसू

SHRIYANSH SRIVASTAVA

आँसू जब आखों से गिरते हैं,
गालों पर बोझ से लगते हैं,
लगता ज़िंदगी बर्बाद हो गई,
रोते-रोते अकेलापन छा जाता है,
संसार जैसे मुझपर ज़ुल्म ढा जाता है।
 

फिर बस एक हाथ
जो उन आँसुओ को पोंछता,
मन को सहलाता संभालता है,
बड़ा करीब हो जाता है।
झटपट नया संसार बना जाता है,
मन का बोझ फिसल कर लुढ़क जाता है,
बस वो एक हाथ वो एक साथ
वो एक डोर वो एक मोड़,
ज़िंदगी को बदल देता है।
 

कभी-कभी ये आँसू
ज़िंदगी को एक नया सुकून देते हैं,
गमों के बदल को झकझोरकर
चकनाचूर कर देते हैं।
बनते हैं फिर नए आसमान
और फिर नए अरमान,
जाग जाती है फिर एक चाहत
नई उँचाइयाँ पाने की
नए परचम लहराने की।
 

आँसू निकलने के ख्वाब से
आते थे आँसू,
एक बार रो कर देखा
मज़ा आ गया।

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