यह तेरा कोई ठौर नहीं है Anoop Kumar Singh
यह तेरा कोई ठौर नहीं है
Anoop Kumar Singhबड़े वृक्ष की छाया कहती, रुक जाओ कुछ पल मुझमें,
निर्मल बहती सरिता कहती, पी लो लेकर जल मुझसे।
नींद खड़ी है बांह पसारे, आओ तुमको मैं भर लूँ,
सो जाओ निश्चिंत यहीं पर, सिर तेरा जंघा पर धर लूँ।
विश्राम करो या चले चलो, दो विकल्प हैं और नहीं हैं,
हे राही तू चलता चल रे, यह तेरा कोई ठौर नहीं है।
ये पहाड़ जो अचल खड़े हैं, स्थिरता इनकी गुणवत्ता,
टकरा इनसे दिशा बदलकर, पवन है अपने लक्ष्य पहुँचता।
चलो कोई भी राह पकड़कर, हर राहों में मोड़ बहुत हैं,
मिले कहीं भी दिखे कहीं भी, हर विपदा के तोड़ बहुत हैं।
अंतिम लक्ष्य मिले जब तक की, चाह कहीं कुछ और नहीं है,
हे राही तू चलता चल रे, यह तेरा कोई ठौर नहीं है।
कितनी घड़ियाँ जी ली तुमने, कितनी अब भी बाकी हैं,
कितने रंगो की सज्जा थी, किंतु शेष कुछ झांकी है।
शेष अभी है स्वाद जीत का, शेष अंत की चाह बची,
इतना झेले हो अब तक तो, आगे की भी राह सजी।
सुगम हुआ है पथ तो क्या, जग के गुरु का तो दौर नहीं है,
हे राही तू चलता चल रे, यह तेरा कोई ठौर नहीं है।