हम बड़े हुए तो क्यों हुए Anu Jain
हम बड़े हुए तो क्यों हुए
Anu Jainसोचती हूँ में कभी यूँही
कि हम बड़े हुए तो क्यों हुए,
बचपन ही कितना अच्छा था,
भोला प्यारा कितना सच्चा था।
माँ पापा का हर पल साथ था,
छोटे कन्धों पर एक बड़ा विश्वास था।
अब बड़े होकर लगता है ऐसा,
ज़िन्दगी खेल है ताश के पत्तों जैसा।
कोई राजा तो कोई रानी है,
हर इंसान की अपनी अलग कहानी है।
कोई खुद को समझे हुकुम का इक्का है
और कोई बस गुलाम बनके बिकता है।
हर तरफ झूठ और दिखावा है,
हर साँस की हर आस में छलावा है।
सोचती हूँ में कभी यूँही
कि हम बड़े हुए तो क्यों हुए।