रंग होली के फीके पड़े हैं  ध्रुव कुमार मिश्र

रंग होली के फीके पड़े हैं

ध्रुव कुमार मिश्र

मेरे घर में उदासी का आलम, रंग होली के फीके पड़े हैं,
तू तो सरहद के ऊपर खड़ा है, सपने आँखों से मेरी उड़े हैं।
 

पूछती है बहू मुझसे आकर हाल तेरा उसे क्या सुनाऊँ,
देखकर उसकी उतरी सी सूरत अश्क आँखों से छलके पड़े हैं,
मेरे घर में उदासी का आलम, रंग होली के फीके पड़े हैं।
 

तेरी मैय्या उधर देखती है जिस तरफ से तू घर से गया था,
बाबरी है मैं कैसे बताऊँ नैना तुझ पर ही उसके गडे हैं,
मेरे घर में उदासी का आलम, रंग होली के फीके पड़े हैं।
 

पूछते जब तेरे यार आ कर, ये कलेजा मेरा चीर जाते,
उनको कैसे भला मै दिखा दूँ दिल पे कैसे ये पत्थर पड़े हैं,
मेरे घर में उदासी का आलम, रंग होली के फीके पड़े हैं।
 

याद है तुमको तुमने कहा था रंग होली मे खेलेंगे मिलकर,
आस सबको तुम्हारी लगी है, बच्चे कपड़ों की ज़िद पर अड़े हैं,
मेरे घर में उदासी का आलम, रंग होली के फीके पड़े हैं।
 

गाँव के सब तुम्हे पूछते हैं, बेटा कब आ रहे हो बता दो,
आँख थकने लगी राह तक कर, माना कुछ फर्ज हमसे बड़े हैं,
मेरे घर में उदासी का आलम, रंग होली के फीके पड़े हैं।
 

तुमको लिखने लगा था जो खत ये दौड़ी आई थी माँ भी तुम्हारी,
रो रही थी बहू पास मे ही खत पे आँसू के छीटे पड़े हैं,
मेरे घर में उदासी का आलम, रंग होली के फीके पड़े हैं।
 

मैं तो बूढा हूँ मैं क्या करूँगा कंधे भी मेरे कमजोर निकले,
भार इतना मैं कैसे उठाऊँ ले के यमराज अर्थी खडें हैं,
मेरे घर में उदासी का आलम, रंग होली के फीके पड़े हैं।
 

हाल घर का लिखा इसमे सारा, अब ये खत मैं तुम्हे भेजता हूँ,
इसको पढ़ कर चले आओ बेटा राह में हम तुम्हारी खड़े हैं,
मेरे घर में उदासी का आलम, रंग होली के फीके पड़े हैं।

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