गया फागुन Premlata tripathi
गया फागुन
Premlata tripathiअमित छटा बट छाँव सुहाई,
पवन लहर लट केश उडाई।
पनघट गागर कटि तट सोहे,
चली नार जनु रूप लजाई।
उड़त बालुका अँखियन झपके,
वन कानन घन सुंदरताई।
घायल की गति घायल जाने
स्वेद बहे कर्मठ निपुनाई।
बिन करनी करताल करे जो,
तनिक न भाये यह चतुराई।
घर घर करुना भरे को'रोना.
छीन रहा जो खुशियाँ भाई।
गया प्रेम बरसाकर फागुन,
भरे प्रीति रस आखर ढाई।
गीतिका
समांत आई <> अपदांत !!