मैं दीपक हूँ  ध्रुव कुमार मिश्र

मैं दीपक हूँ

ध्रुव कुमार मिश्र

मुझे पता है जलना होगा लेकिन फिर भी चलना होगा,
एक दिया हूँ उम्मीदों का मुझे माटी में मिलना होगा।
 

जब जब मेरा पथ रोकेगा घना अंधेरा राहों का,
और जोर प्रस्फुतिट होकर मुझको फिर से जलना होगा।
 

मैं केवल इक दीप नहीं हूँ जल कर जो बुझ जाऊँगा,
दिनकर का ही सूक्ष्म रुप मैं तम से लड़ने आऊँगा।
 

आज दिलों में नफरत बैठी हर तरफ अंधेरा फैला है,
भाई-भाई को दुश्मन दीखे मन हो चुका सभी का मैला है।
 

नीति नियम मर्यादा रोते ज्ञान अंधेरों में डूबा है,
लोक लाज सब रीति भूल गए मान अंधेरों में डूबा है।
 

चलो जलाएँ एक दिया हम मन को रोशन करने को,
चलो जलाएँ एक दिया हम जग को रोशन करने को।
 

चलो ज्ञान का दिया जला सम्मान ढूँढ़ कर लाते हैं,
चलो जला कर एक दिया हम मन का मैल जलाते हैं।
 

खो चुका कही जो विश्व पटल पर वो भारत ढूँढ़ के लाना होगा,
निज गौरव के रक्षा का प्रण ले इक दीपक और जलाना होगा।
 

मैं दीपक हूँ सदा जलूँगा अविरल मुझको जलना होगा,
मुझे पता है जलना होगा लेकिन फिर भी चलना होगा।

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