स्वप्न - बेटी का बाप Richa Bipin Pandey
स्वप्न - बेटी का बाप
Richa Bipin Pandeyवो दरवाजे पे खड़ी मुस्कुरा रही थी
चिड़ियों को देख खिलखिला रही थी,
तभी माँ ने पीछे से उसको गोद में उठाया
और वह जोर से चिल्लाई "पापा ओ पापा"
"देखो ना! माँ मुझे खेलने नहीं दे रही"
और अचानक से मेरी नींद खुल गई।
घड़ी में सुबह के 9 बज रहे हैं
अरे! मुझे तो देर हो गई..
आज तो बॉस पक्का काम से निकालेगा,
मेरा ये रोज़ का सपना मुझे देश से निकालेगा।
कल मन की बात उसको बोलूँगा
मुझे अब बेटी का बाप बनना है,
उसकी तोतली आवाज़ से मुझे पापा सुनना है।
हर रोज़ सोचता हूँ
आज बोलूँगा और हर रोज डर जाता हूँ,
क्या करूँ, अजीब उलझन है... दोनों की!
उसे एक ही बच्चा रखना है
और मुझे अपना सपना सच करना है और उसे अपना करना है।
ये कैसी औरत है भगवान! जिसे सिर्फ बेटा ही रखना है,
तभी पीछे से आवाज आई, क्या बात है..
आज आपने चश्मा नहीं पहना..
अरे नहीं! देदो! देर हो रही है ऑफिस के लिए..
सुनो..मुझे कुछ कहना था..
जानती हो आज फिर वही सपना मुझे आया
खुद को बेटी का बाप बना पाया।
रोज़-रोज़ बोलती हूँ बेटी नहीं बेटा चाहिए
और तुमको बेटी ही क्यों चाहिए??
अब उसको क्या बोलूँ
बेटी के सारे त्याग कैसे तोलूँ?
कैसे कहूँ कि वो बेटी ही है
जो हर रिश्ते के ताने बाने को बुनती है
माँ बाप की खुशियों के लिए हर दर्द सहती है।
बेटों का क्या, आज मेरे कल बीवी के होंगे,
उनके लिए सब रिश्ते भरम होंगे,
जिसको हम आज चलना सिखाएँगे
वही कल हमको अनाथाश्रम छोड़ आएँगे,
थोड़ी देर बाद उस आश्रम में बेटी आएगी
और रोते हुए बोलेगी पापा हम आपको घर ले जाएँगे....