धरती का कर्ज  Ajay Kumar Pandey

धरती का कर्ज

Ajay Kumar Pandey

आओ धरती का कर्ज चुकाएँ,
प्रदूषण मुक्त करें धरती को
सब मिल इसको स्वच्छ बनाएँ,
आओ धरती का कर्ज चुकाएँ।
 

इस धरती से क्या कुछ पाते हैं
बदले में हम क्या देते हैं,
स्वार्थ लोभवश पैसे बो कर
सबने इसका अस्तित्व नकारा।
 

शस्य श्यामला धरती सोने सी
इसकी क्षमता दाने बोने की,
पर दूषित व्यवहारों से
इसको हमने ध्वस्त किया,
रत्न प्रसविनी धरती का
हम सबने है विध्वंस किया।
 

पशु, पक्षी, खग, मृग सारे
सब रहते धरती के सहारे,
दम घुटता है सब जीवों का
हिमाद्रि, जल-थल, अवनी, अंबर का,
यदि धरती को सम्मान न हम दे पाएँगे
तो फिर जीवन कहाँ से पाएँगे।
 

जो न समझे आज महत्व को
फिर तरसेंगे शुद्ध पवन को,
शुद्ध व्यवहार, नैतिकता तरसेगी,
बादल बदले नैना बरसेंगी,
आओ सब मिलकर प्रण ये उठाएँ
प्रदूषण मुक्त इस धरा को बनाएँ।
 

नैतिक व्यवहारों से ही हम
जब चहुँदिश को जगा पाएँगे,
तब ही मुक्त होगी धरती
सुघड़ जीवन हम जी पाएँगे।

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