डॉक्टर यानी ईश्वर...  Abhinav Kumar

डॉक्टर यानी ईश्वर...

Abhinav Kumar

डॉक्टर! यानी ईश्वर, एक देव, साथ सदैव,
या कहूँ ख़ुदा, जो कभी ना जुदा।
 

मेरा शुभचिंतक, सेवा करे अनथक,
भगवान परमात्मा, हर दम मुझे थामता।
 

स्वयंभू परमेश्वर, मौला का स्वर,
अल्लाह नानक, मेरे जीवन का चालक।
 

रखे हथेली पे जान, ये मेरा दीन ईमान,
मुझे बीमारी से बचाता, मेरा ईसा, मेरा विधाता।
 

खून का ना कोई रिश्ता, फ़िर भी वो जैसे फरिश्ता,
प्रभु का दूसरा रूप, ये अवतार जो है अनूप।
 

दिया जगदीश का दर्जा, मैं ऋणी, असंख्य है कर्ज़ा,
निभा रहा ये अपना धर्म, २४ घंटों करे अपना कर्म।
 

मेरी छाँव व मेरी धूप, ये आदित्य का स्वरूप,
रोग से दिलाता ये निजात, कष्ट हरता, है मेरा नाथ।
 

कहलाया जाता ये भी वैद्य, हमें आज़ाद कर होता क़ैद,
स्वास्थ्य कर्मी, चिकित्सक, झुके शीश नतमस्तक।
 

सब व्याधि की रखे दवाई, है हमदर्द, ना कभी तन्हाई,
कोई जब है काम ना आता, मेरा जीवन ये ही बचाता।
 

सब जब अपने हाथ खड़े करें, ये ही दुश्मन से जा जान से लड़े,
जितना करूँ, कम पड़े सलाम, अनुगृहित इसका है आवाम।
 

सैनिक प्रहरी है ये योद्धा, मेरी खातिर ये ना सोता,
हृदयतल से है आभार, तज्ञता, समर्पण, है सम्मान।
 

जिसने इस पर किया है हमला, दुर्भाग्यपूर्ण ये निंदनीय घटना,
जिसने भी इसे किया है घायल, बच ना पाएगा बुजदिल कायर।
 

पशुवत अमानवीय है ये सोच, मरा ज़मीर, क्यों ना संकोच?
मन आया भर, दहशत दुख डर।
 

चिंता का विषय, गुरु से लड़ रहा शिष्य,
तना अपना रहा वो काट, ख़ुद से ख़ुद को रहा है बाँट।
 

घृणित घिनौनी ये करतूत, अपना घर ही लिया है लूट,
अपने पैरों पे मारी कुल्हाड़ी, बदसलूकी पड़ जाए ना भारी।
 

अपनी व्यथा वो किसे बताए, शुभ कर्म कर पत्थर खाए,
शर्म से नीचे झुक गया सिर, छाती जैसे दी है चीर।
 

उसपे गर जो होगा वार, पूजा नमाज़ का क्या आधार?
गीता कुरान देते तालीम, परवरदिगार से पहले हकीम।
 

जिसने उसपर फैंके पत्थर, फूँक दिया मानो अपना घर,
निर्दय क्रूरता घात व हत्या, कुछ ना हासिल, राह है भटका।
 

गर डॉक्टर को दे देगा घाव, पापी का फ़िर नहीं बचाव,
कहती बाईबल गुरु ग्रंथ साहिब, प्रेम भाईचारा अहिंसा हों एक।
 

डॉक्टर्स, नर्स, स्वास्थ्य कर्मी, पुलिस, सुनो इनके दुख दर्द, इनकी चीख,
अपनी जान जोखिम में डाल, बचा रहे ये हमारी जान।
 

बजाए करने के सहयोग, इनका हो रहा दुष्प्रयोग,
इन्हें सम्मान का पूरा हक, विश्वास आस्था हो भरसक।
 

ये ही असली रोल मॉडल, अंगारों पे ये रहे हैं चल,
इनसे गर हो दुर्व्यवहार, अपराधी पे है धिक्कार।
 

धरती को कर रहा है बंजर, ख़ुद पर घोंपा दोषी ने खंजर,
पैरामेडिक्स का देखके त्याग, आँखें नम, सराहनीय ये काम।
 

बजाए बढ़ाने के उनका मनोबल, उनसे धोखा फरेब वा छल,
कैसे पाएँ हैं संस्कार? रखवाले को दे रहे आघात !
 

देश की बदनसीबी, तहज़ीब की गरीबी,
जिस थाली में कर रहे हैं भोजन, उसमें छेद विश्वासघात गबन।
 

माना ना कर सकते मदद, पार मगर ना करें अपनी हद,
हमारी खातिर वे रहे हैं जूझ, फ़िर क्यों हिंसा और गोला बारूद ?
 

नेकी कर दरिया में डाल, रक्षक हो रहा लहूलुहान,
लज्जित मौन सन्न इंसानियत, दुविधा में, क्यों बदली नीयत ?
 

फ़िर भी कम नहीं वैद्य का जज़्बा, घूम रहे हर नुक्कड़ कस्बा,
आज लग रहा है असहाय, जाए तो वो किस राह जाए ?
 

ऐसी स्थिति चिंताजनक, ईश पे शक, यानी ख़ुद पर शक,
अस्पताल में हो रहे बवाल, ख़ुद से नासमझ पूछे सवाल !
 

नर्सों के साथ हो रही अभद्रता, फूहड़पन, ताने और अश्लीलता,
वैद्य के साथ ये करता कौन ? ऊपर वाला देख व्याकुल मौन।
 

इनपर वाजिब है कार्रवाई, कुछ हद तक तब हो भरपाई,
गुनहगार को जब वैद्य बचाएगा, क्या उस वक्त वो उनसे नज़रें मिला पाएगा ?
 

इस सवाल का जवाब कठिन, गद्दार का ज़मीर जागेगा किस दिन ?
जान बचाने वालों पर हमला गुनाह, उनको ना कोई माफ़ी, ना मिले पनाह।
 

असामाजिक तत्व, तम घनत्व,
हमलावर की सोच खतरनाक, परमात्मा को भी करे है ख़ाक।
 

मारपीट, गालियाँ, फेंक रहे हैं थूक, चिंतन कहाँ पे हुई है चूक?
ओझल विनम्रता शिष्टाचार, स्वार्थ मतलब का हो गया संसार।
 

जाँच का हो रहा पुरजोर विरोध, भगाया जा रहा, बिन वजह क्रोध,
करने दें सेवा, ना करें व्यवधान, कुछ तो होगा दीन ईमान।
 

भगवान से थोड़ा जाएँ डर, जैसे बोए बीज, वैसे फ़ल,
असंवेदनशील लोग, समाज का मनोरोग।
 

गंभीर अक्षम्य दुष्कृत्य, ना कुछ गुप्त, सब तथ्य,
चिकित्सक की सबसे अहम भूमिका, इसको चूमा, मानो रब को चूमा।
 

ना बंदूक, ना गोली, ना मिसाइल है संग, फ़िर भी ये लड़ रहा है जंग,
इसके जुनून को है नमन, ये ही धरती, ये ही गगन।
 

इसकी सेवा का यही सिला, अल्लाह से भला कोई करता है गिला ?
द्रवित व्याकुल मर्म, संकट में है धर्म।
 

अच्छा हो बर्ताव, सही दिशा में बहाव,
श्वेत वस्त्र में ये इंसान, ज़रिया रब, ईसा, भगवान।
 

सहयोगात्मक रवैया बहुत ज़रूरी, आवश्यक हो ख़त्म दिलों में दूरी,
सरकार का कड़ा फ़ैसला, बढ़ा चिकित्सकों का हौसला।
 

डॉक्टरों की हिफाज़त, वास्ते पेश अधिनियम,
महामारी रोग अधिनियम 1897, मंज़ूरी के साथ संशोधन तय।
 

ना और अन्याय, होगा मजबूत, ना असहाय,
अध्यादेश पास पेश, हिंसा ना बर्दाश्त का संदेश।
 

कठोर सज़ा का प्रावधान, जुर्माने से भी संज्ञान,
डॉक्टर्स के लिए सुरक्षा कवच, हारेगा झूठ, जीत जाएगा सच।
 

ज़ुल्म की अब आँधी, पड़ेगी अत्याचारी को भारी,
इस कदम का स्वागत, दिल हुआ गदगद।
 

इस कानून का वायदा, उपद्रवियों के मन में डर पैदा,
सरकार की प्रशंसा, कानून में तब्दील मंशा।
 

सही वक़्त पर उचित निर्णय,
इरादों वाले होते हैं गिने चुने।

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