तुम क्यों नहीं उड़ते? Sourabh Kotecha
तुम क्यों नहीं उड़ते?
Sourabh Kotechaचिड़िया पूछती इंसान से, क्यों तुम धीरे-धीरे चलते हो?
क्यों तुम अपने हाथ उठाकर नहीं उड़ते हो,
तुम्हारे पंख कैसे कटे?
जिससे हम दोनों ज़मीन आसमान में बँटे?
सुनता हूँ गुरुर तुम पर जल्दी चढ़ता,
शायद इस भार से इंसान कुछ पल ही उड़ता,
दूसरों को नीचे दिखा कर व्यंग करते हो,
और खुद ही मन ही मन उड़ते हो,
शायद इसलिए ही तुम्हारे पंख कटे हैं।
जंगलों को सूना कर अपने मकान तुम बनाते,
उड़ते तो हम पक्षियों को अनाथ तुम कर जाते,
यह भी सुना है कि उड़कर तुम संभल नहीं पाते हो,
और जिसने उड़ना सिखाया, उसी के पर तुम काटते हो,
शायद इसलिए ही तुम्हारे पंख कटे हैं।
अपनों की कमी देख, उसको नाम तुमने अपंग दिया है,
शायद उस दर्द का एहसास दिलाने तुम्हे अपंख किया है,
अपनो का संग तुम छोड़ अपनी राह पे चलते हो,
ज़रूरत में मुसाफिर देख नौ दो ग्याराह हो लेते हो,
शायद इसलिए ही तुम्हारे पंख कटे हैं।
हम दोनों में जमीन आसमान का फर्क है,
और दिल नहीं, आधार तुम्हारा सिर्फ दिमागी तर्क है,
हम तो साथ-साथ उड़ते हैं, तुम अपनो में ही बँटे,
शायद इसलिए ही तुम्हारे पंख कटे।