मलहम के अवशेष Ajay Kumar Pandey
मलहम के अवशेष
Ajay Kumar Pandeyजीवन की अंगनाई में
भाव मिले, अतिरेक मिले,
घाव मिले अतिरेक मगर
बस मलहम के अवशेष मिले।
व्यंग्य बाण बस सुनता आया
नश्तर दिल पर चुभता पाया,
दर्द चिकोटी का सह सह कर
रोता आया, हँसता आया।
आरोप यहाँ बहुतेरे आए
क्या अपने और क्या थे पराए,
जग के तीखे दंश हैं झेले
पग-पग कितने घाव मिटाए।
कहने को बहुतेरे अपने
साथ मगर जाने क्यों छूटा,
जब-जब उनसे हुआ सामना
तब-तब मन का दर्पण टूटा।
इस दर्पण के टुकड़े में ही
अब खुद को मैं खोज रहा हूँ,
हर टुकड़े के अवशेषों में
दंश तेरा ही देख रहा हूँ।
इन अवशेषों के एहसासों में
दर्द मिले अतिरेक मिले,
घाव मिले अतिरेक यहाँ
बस मलहम के अवशेष मिले।