लड़की KUMAR SAURABH PRAVEEN
लड़की
KUMAR SAURABH PRAVEENये नाज़ुक सी फूल की पंखुड़ी काँटों के बीच पलती है,
ज़माने की इस आग में ये लावा बन के जलती है।
लाख कोशिश होती है, इनको पीछे छोड़ने की,
स्वाभिमानी ये गर्व से कन्धा मिला के चलती है।
गर्व और सम्मान से ये ज़िंदगी जी लेती है,
तो बेहिचक मज़बूरियों का सामना कर लेती है।
त्याग और बलिदान की आहुति ये देती है,
तो प्यार और विश्वास की ये साख भी रख लेती है।
हैं वज़्र से भी कठोर तो मोम से भी नरम,
सहसा ये दो कुलों की लाज भी रख लेती है।
दुःख और आपत्ति को अपने से दूर रखती है,
तो प्रेम के बंधन को भी सहर्ष स्वीकार लेती है।
गर्व है हमें उन बेटियों पर जो क़ुरबानी देते न सोचती,
ज़िंदगी देकर भी ये स्वाभिमानी ही रहती है।