मेरी क्या गलती थी?  अंजना कुमारी झा

मेरी क्या गलती थी?

अंजना कुमारी झा

माँ कहती थी रोज़ाना
जब तू बाहर आएगा,
देख दुनिया के रंग निराले
तेरा मन खुश हो जाएगा।
 

माँ के गर्भ में बैठा
मैं सोच-सोच खुश हो जाता था,
तो बाहर की रंगीली दुनिया से
नए ख्वाब चुराता था।
 

इस मीठे सपने के संग जीता था मैं रोज़ाना,
ना सोचा था,
एक दिन ऐसा भी आएगा,
जब मानव अपना असली रूप दिखलाएगा।
 

माँ बेचारी, भूखी-प्यासी सोच रही थी पानी में,
कैसे भरे पेट वो मेरा, इस बढ़ती महामारी में।
फिर अगले पल देव रूप धारण कर राक्षस प्रकट हो आया,
बारुदों से भरा फल माँ को खिला, मन ही मन मुस्काया।
 

क्या कसूर था मेरा,
क्यों तूने मेरा हक़ छीना है?
मेरे नन्हे-नन्हे ख्वाबों को
तूने एक पल में रौंदा है।
 

क्यों एक बार ना सोचा तूने
घर जा कर क्या मुँह दिखलाएगा,
मेरी माँ की कोख उजाड़ क्या तू
अपनी माँ की कोख में सुकून की साँस ले पाएगा?
 

हे मानव ! इस धब्बे का रंग
तू सदियों तक ना उतार पाएगा,
और इस पाप के बोझ में एक दिन
तू भी खत्म हो जाएगा।

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