छलका रहा व्योम Premlata tripathi
छलका रहा व्योम
Premlata tripathiरंगों भरा ये व्योम मंदिर गा रहा,
कुछ भाव जैसे ये सजल छलका रहा।
लो आ गया है प्यार लेकर सावनी,
बनकर घटा सितधार से नहला रहा।
नवहास ले मकरंद से महके सुमन,
चहुँदिक नवल उन्माद सा ज्यों छा रहा।
पीहर नहीं सखियाँ नहीं ये मीत बन,
आँसू नयन भरना नहीं समझा रहा।
बहता पवन सरसे विटप झूले मगन,
धरती गगन का प्रेम ये दुलरा रहा।
छंद- मधुवल्लरी
प्रदत्त मापनी- 2212 2212 2212
पदांत- रहा<>समांत- 'आ'