माना कि हमसे भूल हुई सिमरन मल्होत्रा
माना कि हमसे भूल हुई
सिमरन मल्होत्रामाना कि हमसे भूल हुई
हम सज़ा के हकदार हैं,
हर सज़ा के लिए तैयार हैं,
मगर परम पिता आपका हाथ
अगर बच्चों के सर से उठ जाए,
क्या ये भी कोई संसार है।
दो सज़ा हमें,
हर पाप के लिए हम ज़िम्मेदार हैं,
ना जाने कैसे माफी माँगें तुमसे,
हम अपने कर्मों के लिए शर्मसार हैं।
आज विनती कर माँगते हैं
इस संसार की सुख शांति वापस,
हमारे हर गुनाहों की सज़ा
आज हमे क़ुबूल हुई,
हे ईश्वर, माना की हमसे भूल हुई।
कैसे विश्वास दिलाए तुम्हें,
कि हम अपने पापों के लिए शर्मिंदा हैं,
और जिस इंसान को तूने अपने हाथों से बनाया था,
उसकी इंसानियत आज भी ज़िंदा है।
देख पिता आज तेरे बच्चे
मिलकर इस वक्त से लड़ रहे,
मुसीबतों के पहाड़ पर
इक दूजे का हाथ थाम कर चढ रहे।
जैसी दुनिया पहले थी
उसे फिर वैसे ही कर रहे,
जहाँ सब साथ मिलकर जीते थे,
और न ही कोई भेद भाव रहे।
फिर वही मौज भरे दिन
और चैन की रातें लौटा दो,
वहीं हँसता खेलता संसार
और प्यारा सा चमत्कार दिखा दो।
हे ईश्वर अपने पिता होने का फ़र्ज़
एक बार फिर निभा दो,
अपने बच्चों को माफ कर
उन्हें जीने का सलीका सिखा दो।
अब न ही कुछ खोना है,
और न ही कुछ पाना है,
बस दोनों हाथ जोड़कर,
मस्तक तेरे आगे झुकाना है।
हर फ़र्ज़ इंसान का
तहे दिल से निभाना है,
तेरे इस संसार से
लड़ाई का अक्ष मिटाना है।
लौटा दो वो खुशी और मासूमियत,
जो इस दुनिया से है दूर हुई,
हे ईश्वर माना,
माना की हमसे भूल हुई,
माना की हमसे भूल हुई।
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आज इंसान अपने गुनाहों की सज़ा पा रहा है। ये कोरोना हमारे बुरे कर्मों का ही फल है। हमने प्रकृति के साथ बहुत खिलवाड़ किया है। मनुष्य इस चीज़ को समझ चुका है। इस बात को अपनाते हुए और ईश्वर से क्षमा माँगते हुए मैंने ये कविता लिखी है। अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है, हम अब भी इंसानियत को ज़िंदा रख अपने प्रभु से क्षमा माँग सकते हैं। वह अपने बच्चो को ज़रुर माफ कर देंगे।