पर्यावरण-प्रदूषण डॉ. राघवेंद्र कुमार पांडेय
पर्यावरण-प्रदूषण
डॉ. राघवेंद्र कुमार पांडेयचहुँ ओर घिरा जो जीवन के
पर्यावरण कहाता है;
हरी भरी धरती पर ही
हर जीव जंतु मुस्काता है।१।
मुँह बाए खड़ी समस्या का
अब भी हो सकता निदान,
स्वीकार करें यदि हर्षित हो
हम सब परमेश्वर का विधान l२।
भाँति-भाँति के रोग शोक
हैं परिणति प्रकृति उपेक्षा के,
हों जागरूक शुभ करें कार्य
यह जीवन जगत अपेक्षा के।३।
भूमंडल जल रहा आज
ज्यों जले घास अंगारों में;
धरती बेचारी सिसक रही
लग गया ग्रहण सिंगारों में।४।
मानव संग जीवों पौधों का
दम आज प्रदूषण से घुटता,
इस विकराल समस्या हित
क्यों सभ्य समाज नहीं जुटता?।५।
भीषण आई है बाढ़ कहीं
और कहीं पर सूखा है,
मानव के कृत्यों के कारण
बहु जीव जंतु जग भूखा है।६।
हो रही चतुर्दिक हर उन्नति
केवल उद्योगों के कारण!
कर भला बंद जीवन-साधन
निर्धनता का क्यों करें वरण?।७।
रेगिस्तानों में जा देखो
नहिं व्यर्थ बूंद जल बहता है,
अमृत है जल की एक बूंद
हर प्यासा यह कहता है।८।
वृक्ष लगाएँ शोभा पाएँ
चिड़ियों को दाना पानी दें,
हाथ मिलाकर मुहिम चलाकर
नवजीवन को आसानी दें।९।
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पर्यावरण शब्द का निर्माण 'परि' और 'आवरण' शब्दों को मिलाकर हुआ है। पर्यावरण का तात्पर्य है आस-पास का परिवेश और वातावरण। पर्यावरण में प्रकृति के विभिन्न अंगोपांग सम्मिलित हैं। चिरकाल तक प्राकृतिक सम्पदा की सुरक्षा और जीवन जन्तुओं के संरक्षण के कारण पर्यावरण विशुद्ध एवं सतुलित रहा है। किन्तु ज्यों-ज्यों वैज्ञानिक प्रगति होती गई, व्यवसायिक और औद्योगिक विकास होने लगा अपने उपयोग के लिये वृक्षों को नष्ट किया गया और तीव्रगति से वृक्षारेापण नहीं किया गया, कल-कारखानों का दूषित द्रव्य नदियों और अन्य जलाशयों में प्रवाहित किया गया त्यों-त्यों पर्यावरण प्रदूषित होता गया। फलस्वरूप वायु प्रदूषण और ऊर्जा प्रदूषण का संकट बढता जा रहा है। ऐसी स्थिति में पर्यावरण संरक्षण के प्रति सजग, जागरूक और सचेष्ट रहने की आवश्यकता है।