क्यों? विकास वर्मा
क्यों?
विकास वर्मादेखो दुनिया क्यों ख्याली है?
करती सबकी यहाँ रखवाली है,
बनते मंदिर मन मंदिर में
देखो ये कितनी भक्तमाली है।
याद आती है स्याही के रंगे हाथ
मन भी बचपन की मतवाली है,
जो बचपन हम जिए इस धरा पर
वो बचपन नहीं आने वाली है।
मन की बेला देखो वनिते जो
करती हर जिद्द मतवाली है,
तड़पता रहे हर आशिक देखो
नहीं मिले कोई दिलवाली है।
मंदिर में नारी तुम ही रब से जो
माँगती हो तन रूपवाली है,
करता यौवन तेरी ही पूजन
माँ की पूजन क्यों खाली है?
यहाँ गरीब को भीख नहीं मिले
ढोंगी-साधु देखो मालामाली है,
अंधी जनता विश्वास करे भ्रम जो
होता देखो उसका घर जंजाली है।
अमीर बदलते कपड़े रोज देखो
कपड़े भी कहे ये कौन मतवाली है,
हमको पहन कर फेंके गटर में
गरीब का तन यहाँ क्यों खाली है?
अमीर शहजादे नौकरी वाले
कहता सबको अमीरों वाली है,
दहेज़ में लुटे, गरीब की रौशनी
देखो ये भीख माँगते मवाली है।
दहेज़ के कारण बेटी सब मारे
माँ का गर्भ भी नहीं ममतावाली है,
बाप की बेटी चले जब जहाँ से
देखो धरा कितनी धुंधलाली है।
नेतन को देखो, ध्यान से देखो
देखो ये जन कितना जाली है,
वादा करके माँगे मधुवन को
दु:ख पल वे देखो, बेख्याली है।
लोग भी देखो स्वार्थ में सब डूबे
कोई न करे जग की रखवाली है,
आपस में लड़ते जाति-धरम जो
टूटे एकता की सुन्दर प्याली है।
प्रेमी के सपने टूटे भाई देखो
कैसी दुनिया यहाँ जनजाली है,
तड़पता रहे हर आशिक देखो
नहीं मिले कोई दिलवाली है।
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आज की दुनिया ऐसी हो गई है जहाँ मित्र को मित्र नहीं, गरीबों को अन्न नहीं, प्रेमी को प्रेम नहीं। न जाने कितनी बेटियों को इस दहेज़ ने संसार में आने से पहले ही मार दिया। अमीरों की तो कश्तियाँ ही कुछ और हैं। इस संसार में असत्य का बोलबाला है क्योंकि सत्य पर चलने वाले अक्सर टूटते दिखे हैं।