ऑनलाइन कालांश suman sabhajeet yadav
ऑनलाइन कालांश
suman sabhajeet yadavवह मुस्कराहट, वह हँसी,
वह धीमी बातों की फुसफुसाहट
अब ना सुनाई देती है,
क्योंकि अब ऑनलाइन कक्षाएँ चलती हैं।
वह डस्टर, वह चॉक,
वह पुस्तकें वह कापियाँ,
वह पुस्तकालय, वह प्रयोगाशाला,
अब ना नज़र आते हैं,
क्योंकि अब ऑनलाइन कक्षाएँ चलती हैं।
वह खेल का मैदान,
वह घंटी की आव़ाज,
वह आधी छुट्टी, वह कैंटीन के पकवान,
वह कोलाहल, वह शोरगुल,
अब ना उत्पन्न होते हैं,
क्योंकि अब ऑनलाइन कक्षाएँ चलती हैं।
वह संगीत, वह नृत्य,
वह हस्तकला का कालांश,
वह चित्रकला, वह मानचित्र,
अब अदृश्य से लगते हैं,
क्योंकि अब ऑनलाइन कक्षाएँ चलती हैं।
वह विद्यालय का परिवेश,
वह चंचलता, वह नटखटपन,
वह मीठे मधुर स्वर,
वह निश्चल सा प्रेम,
अब ना महसूस होते हैं,
क्योंकि अब ऑनलाइन कक्षाएँ चलती हैं।
अब तो नज़र आते हैं
विद्यार्थीयों के छोटे-छोटे छायाचित्र,
एक चौखट में मानो प्रतिबिंब स्वरुप,
क्योंकि अब ऑनलाइन कक्षाएँ चलती हैं।
वह तमाम तकनीकी यंत्र
जिनके प्रयोग पर कभी टोका करती थी,
आज उसी के समक्ष उपस्थिति पर जोर देती हूँ,
क्योंकि अब ऑनलाइन कक्षाएँ चलती हैं।
वह असावधान से नटखट बच्चे
कैमरे के समक्ष, सावधान नज़र आते हैं,
अभिभावक एवं शिक्षक के बीच
लाचार नज़र आते हैं,
क्योंकि अब ऑनलाइन कक्षाएँ चलती हैं।
वह तमाम पीपीटी एवं वीडियो,
अनेकानेक शिक्षण विधा, भाषिक खेल,
कुछ नाकाम नज़र आते हैं,
क्योंकि अब ऑनलाइन कक्षाएँ चलती हैं।
वह जिज्ञासु बच्चे
कुछ शांत नज़र आते हैं,
निगाहें नीचे किए,
व्हाट्स अप वेब के आसार नज़र आते हैं,
क्योंकि अब ऑनलाइन कक्षाएँ चलती हैं।
प्रश्न पूछने पर क्या कहा,
सॉरी, नॉट एबल टू हियर, मे बी सम नेटवर्क प्राब्लम,
और कभी-कभी लॉगआउट हो जाते हैं,
क्योंकि अब ऑनलाइन कक्षाएँ चलती हैं।
विचलित हो, विवश हो,
अपने आप को ही समझाती हूँ,
शिक्षा के क्रम को आगे बढ़ाती हूँ,
क्योंकि अब ऑनलाइन कक्षाएँ चलती हैं।