बेचारगी rakesh rajgiriyar
बेचारगी
rakesh rajgiriyarइस लॉकडाउन में
बेचारगी का ये आलम है
खाने को दाने नहीं
फिर भी सभी सलामत हैं,
रोता बिलखता परिवार
छूट गई नौकरी और व्यापार,
जो खाते थे सब्जियाँ
अब बेचने को तैयार।
छूटे सारे रिश्ते, फिर भी नहीं टूटे
बच्चों की उन नन्ही आँखों में
सपने, जो नित्य नई देखते
मासूमियत तो उनके चेहरों से
कब जवानी में ढल गयी,
कमाने की फ़िक्र उन्हें अभी से लग गयी।
हौसला बढ़ाती उनकी दो नन्ही आँखें
अक्सर हमसे अब सवाल नहीं पूछती
खोए-खोए से अक्सर वो आपस में बतियाते
काश हम भी कुछ कमा पाते,
तो ढ़ेरों खुशियाँ लाते।