रावण Om Prakash
रावण
Om Prakashहै नमन उस दशानन अपहरणकर्ता के चरित्र को,
जिसने स्वयं सीता को सौभाग्यवती भव का आशीष दिया।
अखंड शैव और वैष्णव दूसरा नहीं कोई हुआ त्रिलोक में,
शत्रु स्वयं के विजयसिद्धि का पुरोहित आमंत्रण जिसने स्वीकार किया।
श्री राम को माता सीता जीवित मिली, ये प्रभु का शौर्य था,
पर माता सीता पवित्र मिली, यह रावण की मर्यादा थी।
हाँ था वह महाज्ञानी खुद के अहंकार में मदहोश,
पर बहन सम्मान की खातिर, रची उसने रामायण की गाथा थी।
अहम में डूबा दशग्रीव, केवल श्री राम से रूठा था,
तभी तो माँ सीता को उसने, कण भर भी ना लूटा था।
था वो कलियुग का राम नहीं, वो त्रेता युग का रावण था,
मरते-मरते भी जिसके मुख से "हे राम" नाद ही गूँजा था।