कोरोना  APOORVA SINGH

कोरोना

APOORVA SINGH

कब खत्म होगी ये अमावस जाने
अब सब्र ना हो पाएगा,
है जीवित वो सूर्य जब तलक
अंधेरा कायम कहाँ रह पाएगा।
 

इस रात को चीरती हुई
एक रौशनी ज़रूर आएगी,
आशाओं की छटा बिखेर
दर्द सारे समेट ले जाएगी।
 

वो परमात्मा इतना क्रूर नहीं
जो तिल-तिल मारे अपनी औलादों को,
कुछ खता तो हमसे भी हुई होगी
सबक सिखा, वो फिर बस्ती बसा जाएगा।
 

इस मौत के तांडव को
अब रुकना ही होगा,
इन जलती चिताओं को
हर हाल बुझना ही होगा।
 

कितने घर बर्बाद होंगे
और कितने नन्हें अनाथ होंगे,
कितनों की कोख उजड़ेगी
जाने कितनो की लाठी टूटेगी।
 

बंजर हो चुके इस मानवी वन को
फिर से पनपना ही होगा,
एक बार फिर रावण को
राम के आगे झुकना ही होगा।
 

प्राण शक्ति की मशाल को
फिर से जलना ही होगा,
इन जलती चिताओं को
हर हाल बुझना ही होगा।

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