प्यार की कश्मकश  Sachin Prakash

प्यार की कश्मकश

Sachin Prakash

बेकरार दिल है, बेकरार हैं नजरें,
कश्मकश में बीते, हर दिन और ये रातें,
खुद से क्या छिपाना, खुद को क्या बताना,
उनकी ही हैं सब बातें, बस उनको ना बताना,
इशारों से जताया, हर बात से बताया,
उनके दिल के हालातों का, कुछ समझ ना आया।
 

दिल के हर साँचे में उकेरते हैं उनको,
उम्मीदों के सहारे समेटते हैं उनको,
बेबसी का ये आलम बढ़ता ही जा रहा है,
इश्क़ का ये उलझन, उलझता ही जा रहा है,
कैसे समझूँ मैं कि वो हैं बिन मेरे अधूरे,
थोड़े-थोड़े से खोए, थोड़े-थोड़े से उखड़े।
 

उनको पाने का ये सपना, क्या सपना ही रह जाएगा,
क्या एक दिल की बेताबी को दूसरा समझ ना पाएगा,
रोज़ मिलती ये नजरें, कब उनके दिल को कह पाएगा,
कब मिलेंगे लब से लब, कब साँसों में साँस समाएगा।

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