उनकी यादें Sachin Prakash
उनकी यादें
Sachin Prakashपलकों में उनके ख़्वाब हैं मगर
अब निगाहें नहीं मिलती,
फ़िजा में है महक उनकी ही
मगर अब साँसें नहीं मिलती।
दूर हो गए वो हमसे
कुछ ऐसी उलझनें देकर,
यादों में जिंदा रहकर
वो मुझे मरने भी नहीं देती।
अधूरी इस कल्पना को
पूर्ण करूँ कैसे अब,
अंतहीन कहानी को
अल्प अमर करूँ कैसे अब।
अनहदों की बेड़ियों को
वो तोड़ कर है जा चुकी,
अनंत कोई सागर में
सब छोड़ कर है जा चुकी।
मेरे लफ्जों में घुलकर
अब वो गज़ल नहीं बनती,
गुज़रती है गलियों से मेरे मगर
अपनों में नहीं लगती।
दर्द की दवा बनकर
दर्द घटने भी नहीं देती,
यादों में ज़िंदा रहकर
वो मुझे मरने भी नहीं देती।