सब हो कर भी कुछ नहीं Sachin Prakash
सब हो कर भी कुछ नहीं
Sachin Prakashकुछ अनकही बातों को सुन लो कभी
तो दिल की तड़प थोड़ी कम हो जाएगी,
इन बेताब धड़कनों को समझ लो कभी
तो बैचैन रूह कुछ सुकून पाएगी।
हर बार ये नज़रें सिर्फ तुम्हें ढूँढती हैं,
उठतीं हैं पलकें पर कुछ ना बोलती हैं,
इतने हो करीब फिर तन्हाई क्यों है,
ख्वाब तुम्हारा मेरी परछाई क्यों है।
जो होठों पे तेरे हो वो एहसास मेरे
तो इस शोले को भी शबनम मिल जाएगी,
इस नफ़रत को पिघला दो कुछ लफ्जों से अपने
आसान होंगी ये राहें और मंज़िल मिल जाएगी।