ये आँखें Reena Gupta
ये आँखें
Reena Guptaअधखुली आहों से झाँकता
सूना भविष्य ,
जिसको प्राप्त करने के लिए
प्रतिपल प्रगति करती
ये उँगलियाँ, थक चुकी हैं।
ना जाने कब चुपके से
गुज़र गई बहार इनके
दामन से,
और, उसके रंजोग़म का
एहसास भी ना हो सका।
क्या करें जब प्रतिपल
दूर होती इन स्मृतियों
के साथ
इनका सूना जीवन भी
भाग रहा है,
अपने अंदर समेटे
गुमनाम भविष्य को।
क्या ये स्तब्ध
और एकटक देखती आँखों
से टपकता सूना भविष्य
इनके जीवन का खालीपन
भर सकेंगी?
शायद ये अधखुली आँखें
सिर्फ चंद पलों का एहसास कर
पूर्णरूपेण बंद हो जाएँगी
खोखली लाश के समान।
और रह जाएगा सिर्फ
एक अँधा और निर्लज्ज भविष्य
बंद आँखों के पार
लाशों के कटघरे में।