संदेसा Yogendra Singh Chauhan
संदेसा
Yogendra Singh Chauhanघुमड़- घुम्मकड़ कारे बादल,
प्रेम सन्देसा ले, उड़ जा पागल,
कारे-कारे नैनों वाले,
बदरा ओ ! मतवाले।
शुष्क ह्रदय की कूक में,
पी से मिलन की हूक उठी,
कोमल काया से पोखर में,
चंचल छाया की लहर उठी।
कौन दिशा में जाकर फेरूँ,
पुष्प स्मृतियों की डोली,
मैला मन कहाँ दे डारूँ
खेलूँ पिय संग होली।
जा पिया कान्हा बन बैठे,
समझे न बेला बिरहा वाली,
जोग जिया के कैसे टूटे,
पद पिया संग सरहा डाली।