प्रेम Atul Pethari
प्रेम
Atul Pethariतुम्हें अविराम, अपलक देखता रहूँ ऐसे
जैसे देखता है चातक
बादल से बरसने वाली पहली बूंद को।
तुम्हें संजो कर रखूँ
तुम्हें सजा कर रखूँ
जैसे अंधेरे में प्रकाश, और प्रकाश में प्रतिबिम्ब..
तुम मानसिक विचारों का काल्पनिक सत्य हो
और तुम ही वैकल्पिक बंधनो से मुक्त हो।
तुम कोमल हो, सुशोभित हो,
तुम चंचल हो, मनमोहिनी हो।
मैं भीषण आग का सूर्य प्रिय
तुम निर्मल जल की शीतल धारा हो,
मैं सन्नाटे का शोर कहीं
तो तुम गीतों की गुंजन माला हो।
मैं व्यापक निश्चिंत आसमान सा
तुम भूमण्डल की परिधि समान,
मैं तुम में विलीन विस्तार स्वरूप
तुम मुझमें शब्दों के अर्थ समान।