सिर्फ तुम Atul Pethari
सिर्फ तुम
Atul Pethariमैं हूँ ज़रा सा कतरा भी तुम्हारे लिए
तो गिरा दो अपनी आँखों से..
जैसे गिरते हैं टूटकर पत्ते अपनी शाखों से।
मैं चुभता हूँ तुमको,
तो फिर मिटा दो काजल अपनी आँखों से
जैसे छँट जाते हैं बादल तेज़ धूप आ जाने से।
मैं हूँ ख़ुशी तो सजाओ न अपने होंठों पर,
जैसे सजती है दुल्हन, घर से विदा होने पर।
मैं हूँ लफ़्ज़ कहीं, तो ग़ज़लों में गुनगुनाओ तुम,
मैं हूँ ख़त तो फिर सीने से अपने लगाओ तुम।
हो भाग्य की रेखाओं में तो मिल जाओगे,
या फिर अपनी रेखाओं से मुझको मिटाओ तुम।