वर्तमान के इस पल में  Rakesh Sharma

वर्तमान के इस पल में

Rakesh Sharma

सूरज की तपिश से जब जिस्म झुलसने लगे,
रात का काला स्याह अँधेरा जब सर पर मंडराने लगे,
पथ मंज़िलों सपनों से विचलित होने लगे,
वर्तमान का हर पल भूतकाल में बदलने लगे,
सपनो का हर रंग जीवन की वास्तिवकता में फीका पड़ने लगे,
अपनों का अपनापन बेमानी सा लगने लगे,
महफ़िल में बैठकर अकेलापन हावी होने लगे,
इंतज़ार ज़िन्दगी से बड़ा होने लगे,
लगे ज़िन्दगी का नीरसपन काटने,
ज़िन्दगी की गति वक़्त से पिछड़ने लगे,
तो उठो, वर्तमान के उस पल में देखो।
 

अपने आस-पास घूमकर,
समझो दिल की गहराईयों में उतरकर,
नहीं तोड़ने हैं तुम्हे तारे आसमान से,
नहीं काटनी हैं चट्टानें तुम्हें हाथों से,
ना ही करनी है चोटियों देशों पर फतह तुम्हे,
बस वादा करना है अपने आप से एक छोटा सा,
छोड़ दूँगा भूतकाल की हर बाधा को भूतकाल में,
जियूँगा वर्तमान के हर पल को उसकी आखिरी सीमा तक,
भविष्य की सोच मैं आज रखने वाला हूँ नहीं,
ज़िन्दगी जिस रूप में नज़र आती है मुझे उस रूप में जीना है मुझे।

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