काव्यशाला - श्रृंगार रस की कविताएं

हिंदी साहित्य के श्रृंगार रस की कालजयी कविताओं का संकलन





आज मौसम बड़ा बेईमान है

आनंद बख़्शी

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1700  0

आदमी मुसाफ़िर है

आनंद बख़्शी

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1516  0

जासों प्रीति ताहि निठुराई

घनानंद

शृंगार रस | रीतिकाल

 1489  0

नागमती वियोग खंड 

मलिक मोहम्मद जायसी

शृंगार रस | भक्तिकाल

 2267  0

मोहिबो निछोहिबो सनेह में तो नयो नाहिं

रहीम

शृंगार रस | भक्तिकाल

 1479  0

पावस रितु बृन्दावनकी

महाकवि बिहारीलाल

शृंगार रस | रीतिकाल

 1449  0

लोक-लाज तजि नाची

मीराबाई

शृंगार रस | भक्तिकाल

 1957  0

उलझी हुई रातें मिलीं

सोम ठाकुर

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1656  0

माहि सरोवर सौरभ लै

महाकवि बिहारीलाल

शृंगार रस | रीतिकाल

 1209  0

पत्र तुम्हारे नाम

सोम ठाकुर

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1586  0

रतनारी हो थारी आँखड़ियाँ

महाकवि बिहारीलाल

शृंगार रस | रीतिकाल

 1293  0

फूले आसपास कास विमल

श्रीपति

शृंगार रस | रीतिकाल

 1228  0

आज मदहोश हुआ जाए रे

गोपालदास ‘नीरज’

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1322  0

राखौ कृपा निधान

मीराबाई

शृंगार रस | भक्तिकाल

 1732  0

पिया चली फगनौटी

रांगेय राघव

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1067  0

मेरे नयना भये चकोर

भारतेंदु हरिश्चंद्र

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1330  0

पथ देख बिता दी रैन

महादेवी वर्मा

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1360  0

सजनि कौन तम में परिचित सा

महादेवी वर्मा

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1168  0

मधुपुर के घनश्याम अगर

गोपालदास ‘नीरज’

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1208  0

शलभ मैं शपमय वर हूँ

महादेवी वर्मा

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1107  0

घन गरजे

बालकृष्ण शर्मा 'नवीन'

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1147  0

मैं बैरागण हूंगी

मीराबाई

शृंगार रस | भक्तिकाल

 1583  0

तुम्हें मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा

कुमार विश्वास

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1884  0

प्रीति करि काहु सुख न लह्यो

सूरदास

शृंगार रस | भक्तिकाल

 2090  0

बिरहानल दाह दहै तन ताप

महाकवि बिहारीलाल

शृंगार रस | रीतिकाल

 1195  0

साजन! होली आई है!

फणीश्वर नाथ रेणु

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1255  0

चाह भरो चंचल हमारो चित्त

पद्माकर

शृंगार रस | रीतिकाल

 1286  0

चारु चंद्र की चंचल किरणें

मैथिलीशरण गुप्त

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1920  0

एक आँसू गिरा सोचते-सोचते

नक्श लायलपुरी

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1407  0

सारा बदन हयात की ख़ुशबू से भर गया

आलोक श्रीवास्तव

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1318  0



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