काव्यशाला - श्रृंगार रस की कविताएं

हिंदी साहित्य के श्रृंगार रस की कालजयी कविताओं का संकलन





मैं तुम्हें ढूंढने स्वर्ग के द्वार तक

कुमार विश्वास

शृंगार रस | आधुनिक काल

 3945  0

तुम बिन नैण दुखारा 

मीराबाई

शृंगार रस | भक्तिकाल

 3989  0

सूनी साँझ

शिवमंगल सिंह 'सुमन'

शृंगार रस | आधुनिक काल

 2598  0

हुस्न के लाखों रंग

आनंद बख़्शी

शृंगार रस | आधुनिक काल

 2455  0

नैना निपट बंकट छबि अटके

मीराबाई

शृंगार रस | भक्तिकाल

 2413  0

तुम रत्न-दीप की रूप-शिखा

नरेन्द्र शर्मा

शृंगार रस | आधुनिक काल

 2642  0

झहरि झहरि झीनी बूँद है परति मानों

देव

शृंगार रस | रीतिकाल

 1603  0

क्षण भर को क्यों प्यार किया था?

हरिवंश राय बच्चन

शृंगार रस | आधुनिक काल

 2970  0

उड़ि गुलाल घूँघर भई

महाकवि बिहारीलाल

शृंगार रस | रीतिकाल

 1878  0

बिहारी के दोहे

महाकवि बिहारीलाल

शृंगार रस | रीतिकाल

 2449  0

पारदर्शी नील जल में

नामवर सिंह

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1471  0

जब भी मुँह ढक लेता हूँ

कुमार विश्वास

शृंगार रस | आधुनिक काल

 2207  0

ओप भरी कंचुकी उरोजन पर ताने कसी, 

पद्माकर

शृंगार रस | रीतिकाल

 1683  0

कै रति रँग थकी थिर ह्वै

पद्माकर

शृंगार रस | रीतिकाल

 1415  0

साध

सुभद्राकुमारी चौहान

शृंगार रस | आधुनिक काल

 2011  0

प्रिय चिरंतन है सजनि

महादेवी वर्मा

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1568  0

तुम्हारे चरण

धर्मवीर भारती

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1567  0

हरि तुम हरो जन की भीर

मीराबाई

शृंगार रस | भक्तिकाल

 2366  0

मधुर-मधुर मेरे दीपक जल

महादेवी वर्मा

शृंगार रस | आधुनिक काल

 2208  0

जब मैं तुम्हारी दया अंगीकार करता हूँ

रघुवीर सहाय

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1363  0

मै ना भूलूँगा

संतोषानन्द

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1755  0

आने से उसके आये बहार

आनंद बख़्शी

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1451  0

घूमें घनश्याम स्यामा-दामिनी लगाए अंक

गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1078  0

उदास तुम

धर्मवीर भारती

शृंगार रस | आधुनिक काल

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अभी न जाओ प्राण

गोपालदास ‘नीरज’

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1665  0

हरि तुम हरो जन की भीर

मीराबाई

शृंगार रस | भक्तिकाल

 1955  0

अँखियों को रहने दो

आनंद बख़्शी

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1380  0

मेरे गीत, तुम्हारा स्वर हो

गुलाब खंडेलवाल

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1598  0

आ रहे तुम बन कर मधुमास

गोपाल सिंह नेपाली

शृंगार रस | आधुनिक काल

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हार गया तन-मन पुकार कर तुम्हें

कुमार विश्वास

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1968  0



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