काव्यशाला - श्रृंगार रस की कविताएं

हिंदी साहित्य के श्रृंगार रस की कालजयी कविताओं का संकलन





कुन्दन से अँग नवयौवन सुरँग उतै

देव

शृंगार रस | रीतिकाल

 1120  0

कभी जब याद आ जाते

नामवर सिंह

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1622  0

जिसकी धुन पर दुनिया नाचे

कुमार विश्वास

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1736  0

रूप अनूप दई बिधि तोहि तो

ठाकुर

शृंगार रस | रीतिकाल

 1171  0

मेरी क़िस्मत में तू नहीं शायद

संतोषानन्द

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1260  0

प्रीतो

कुमार विश्वास

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1330  0

फटा ट्वीड का नया कोट

नरेन्द्र शर्मा

शृंगार रस | आधुनिक काल

 938  0

उसके पहलू से लग के चलते हैं

जॉन एलिया

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1262  0

मैं पीड़ा का राजकुँवर हूँ

गोपालदास ‘नीरज’

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1227  0

रंग दुनिया ने दिखाया है निराला, देखूँ

कुमार विश्वास

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1241  0

आते जाते खूबसूरत आवारा सड़कों पे

आनंद बख़्शी

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1160  0

घाँघरो घनेरो लाँबी लटैँ लटे लाँक पर

देव

शृंगार रस | रीतिकाल

 1104  0

म्हारो अरजी

मीराबाई

शृंगार रस | भक्तिकाल

 1417  0

कल नाहिं पड़त जिस

मीराबाई

शृंगार रस | भक्तिकाल

 1215  0

बाँसुरी चली आओ

कुमार विश्वास

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1247  0

हवा के साथ साथ

आनंद बख़्शी

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1058  0

केसरि से बरन

महाकवि बिहारीलाल

शृंगार रस | रीतिकाल

 1224  0

पग घूँघरू बाँध मीरा नाची रे

मीराबाई

शृंगार रस | भक्तिकाल

 1485  0

मैं विद्युत् में तुम्हें निहारूँ

गोपाल सिंह नेपाली

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1252  0

दो गुलाब के फूल

गोपालदास ‘नीरज’

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1347  0

कौन तुम मेरे हृदय में

महादेवी वर्मा

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1435  0

मदनाष्टक

रहीम

शृंगार रस | भक्तिकाल

 1329  0

क्या पूजन क्या अर्चन रे

महादेवी वर्मा

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1153  0

अमर स्पर्श

सुमित्रानंदन पंत

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1287  0

हेरी म्हा दरद दिवाणौ

मीराबाई

शृंगार रस | भक्तिकाल

 1197  0

गोरी गरबीली उठी ऊँघत चकात गात

देव

शृंगार रस | रीतिकाल

 1090  0

दूखण लागे नैन

मीराबाई

शृंगार रस | भक्तिकाल

 1234  0

महफ़िल महफ़िल

कुमार विश्वास

शृंगार रस | आधुनिक काल

 1313  0

शिशिर-पथिक

रामचंद्र शुक्ल

शृंगार रस | आधुनिक काल

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मैं अकेला और पानी बरसता है

शिवमंगल सिंह 'सुमन'

शृंगार रस | आधुनिक काल

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