ख़ुद की ख़बर नहीं ख़ुद को, पर ख़याल उनका रहता है।
नव वर्ष
1910 3
व्यर्थ है अवसाद करना
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चलो दूर कुछ और चल कर देखें
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और ना अब बात हो
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इक रात को रो लूँ बस
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जी करता है
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क़सूर मेरा था
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माँ का चेहरा
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ये कैसी कश्मकश है
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याद तुमको भी आता हूँगा मैं!
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क्योंकि तुम नहीं हो
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शायद तब हम ना होंगे
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बेशक
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