इक रात को रो लूँ बस कौशल कुमार जोशी "कृष्णा"
इक रात को रो लूँ बस
कौशल कुमार जोशी "कृष्णा"इक रात को रो लूँ बस, भूल जाऊँगा कल से,
वादा करता हूँ, ‘पर’ ख्वाब़ों को समझाऊँगा कल से
और...
तुझे भूल ही जाऊँगा दावा तो नहीं कर सकता,
हो सका तो कोशिशें हरकत में लाऊँगा कल से।
इक रात को रो लूँ बस....
इस रात का हक दे दे, बस तस्वीर देखूँगा,
कम्बख्त दिल की मरम्मत करवाऊँगा कल से।
इस रात को रो लूँ बस....
इक रोज़ को उम्मीदों में जी लेता हूँ फिर
आईने देख हकीक़त के पछताऊँगा कल से।
इक रात को रो लूँ बस....
एकतरफा इश़्क बस इक रात को कर लूँ पूरा,
कहाँ चूका? कहाँ ठहरा? खुद को बतलाऊँगा कल से।
इक रात को रो लूँ बस....
आज तो रोऊँगा, बस रोऊँगा, अंधेरों के साथ,
रोशनी में दर्द ज़रा हँस के छुपाऊँगा कल से।
इक रात को रो लूँ बस...
लिखता हूँ फिर से इब़ारत वही खयालों की,
खिर्चों-खिर्चों टुकडों में बिखर जाऊँगा कल से।
इक रात को रो लूँ बस....
ख्वाबों का एक घर जो मैंने भी बनाया था,
तकने दे बस इस रात फिर, गिराऊँगा कल से।
इक रात को रो लूँ बस....
यहाँ होगा तो बस मुसीबतें ही होनी हैं,
दिल को मैं कहीं दूर छोड़ आऊँगा कल से।
इक रात को रो लूँ बस, भूल जाऊँगा कल से,
वादा करता हूँ, पर ख्वाबों को समझाऊँगा कल से।