काव्यशाला - श्रृंगार रस की कविताएं

हिंदी साहित्य के श्रृंगार रस की कालजयी कविताओं का संकलन





तुम आयीं

केदारनाथ सिंह

शृंगार रस | आधुनिक काल

 22673  0

तेरी सुधि बिन क्षण क्षण सूना

महादेवी वर्मा

शृंगार रस | आधुनिक काल

 16672  0

मैं बनी मधुमास आली

महादेवी वर्मा

शृंगार रस | आधुनिक काल

 10985  0

संध्या के संग लौट आना तुम 

सोम ठाकुर

शृंगार रस | आधुनिक काल

 14359  0

आप का खत मिला आप का शुक्रिया

आनंद बख़्शी

शृंगार रस | आधुनिक काल

 10607  0

वसंत गीत

गोपाल सिंह नेपाली

शृंगार रस | आधुनिक काल

 9451  0

फूल

महादेवी वर्मा

शृंगार रस | आधुनिक काल

 10813  0

बादल देख डरी

मीराबाई

शृंगार रस | भक्तिकाल

 18028  0

दोहे

बालकृष्ण शर्मा 'नवीन'

शृंगार रस | आधुनिक काल

 5780  0

रहीम दोहावली

रहीम

शृंगार रस | भक्तिकाल

 10412  0

ऊधो जो अनेक मन होते

भारतेंदु हरिश्चंद्र

शृंगार रस | आधुनिक काल

 6018  0

आज के बिछुड़े

नरेन्द्र शर्मा

शृंगार रस | आधुनिक काल

 5600  0

मंगल विलय

सोम ठाकुर

शृंगार रस | आधुनिक काल

 3790  0

परिचय की गाँठ

त्रिलोचन

शृंगार रस | आधुनिक काल

 3812  0

तमाम उम्र चला हूँ मगर चला न गया

नक्श लायलपुरी

शृंगार रस | आधुनिक काल

 5535  0

धनिकों के तो धन हैं लाखों

गोपालदास ‘नीरज’

शृंगार रस | आधुनिक काल

 5061  0

अँचल के ऎँचे चल करती दॄगँचल को

पद्माकर

शृंगार रस | रीतिकाल

 3405  0

जाति हुती सखी गोहन में

रहीम

शृंगार रस | भक्तिकाल

 4439  0

सफ़ाई मत देना

कुमार विश्वास

शृंगार रस | आधुनिक काल

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लौट आओ

सोम ठाकुर

शृंगार रस | आधुनिक काल

 4642  0

है यह आजु बसन्त समौ

महाकवि बिहारीलाल

शृंगार रस | रीतिकाल

 4026  0

खुद को आसान कर रही हो ना

कुमार विश्वास

शृंगार रस | आधुनिक काल

 6365  0

क्यों इन तारों को उलझाते

महादेवी वर्मा

शृंगार रस | आधुनिक काल

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मैं प्यासा भृंग जनम भर का 

गोपाल सिंह नेपाली

शृंगार रस | आधुनिक काल

 4831  0

हम तुम युग युग से ये गीत मिलन का

आनंद बख़्शी

शृंगार रस | आधुनिक काल

 3577  0

आयौ जुरि उततें समूह हुरिहारन कौ

जगन्नाथदास 'रत्नाकर'

शृंगार रस | रीतिकाल

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आज उनसे पहली मुलाक़ात होगी

आनंद बख़्शी

शृंगार रस | आधुनिक काल

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पुतरी अतुरीन कहूँ मिलि कै लगि

रहीम

शृंगार रस | भक्तिकाल

 2767  0

कमल के फूल

भवानी प्रसाद मिश्र

शृंगार रस | आधुनिक काल

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विदा के बाद

सोम ठाकुर

शृंगार रस | आधुनिक काल

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