रीतिकाल की कविताएँ

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हिंदी साहित्य के रीतिकाल की कालजयी कविताओं का संकलन



दाढ़ी के रखैयन की दाढ़ी सी

भूषण

शांत रस | रीतिकाल

तेरे हीं भुजान पर भूतल को भार

भूषण

वीर रस | रीतिकाल

मैन ऎसो मन मृदु

केशव

शांत रस | रीतिकाल

एक भूत में होत

केशव

शांत रस | रीतिकाल

पवन चक्र परचंड चलत

केशव

भयानक रस | रीतिकाल

अँचल के ऎँचे चल करती दॄगँचल को

पद्माकर

शृंगार रस | रीतिकाल

है यह आजु बसन्त समौ

महाकवि बिहारीलाल

शृंगार रस | रीतिकाल

चौहूँ भाग बाग वन

केशव

अद्भुत रस | रीतिकाल

आयौ जुरि उततें समूह हुरिहारन कौ

जगन्नाथदास 'रत्नाकर'

शृंगार रस | रीतिकाल

दस बार, बीस बार,

ठाकुर

अद्भुत रस | रीतिकाल

नैनन के तारन मै राखौ

केशव

शांत रस | रीतिकाल

आल्हा खण्ड

जगनिक

रौद्र रस | रीतिकाल

झहरि झहरि झीनी बूँद है परति मानों

देव

शृंगार रस | रीतिकाल

उड़ि गुलाल घूँघर भई

महाकवि बिहारीलाल

शृंगार रस | रीतिकाल

इन्द्र जिमि जम्भ पर

भूषण

वीर रस | रीतिकाल

बिहारी के दोहे

महाकवि बिहारीलाल

शृंगार रस | रीतिकाल

ओप भरी कंचुकी उरोजन पर ताने कसी, 

पद्माकर

शृंगार रस | रीतिकाल

कै रति रँग थकी थिर ह्वै

पद्माकर

शृंगार रस | रीतिकाल

सेवक सिपाही सदा उन रजपूतन के 

ठाकुर

वीर रस | रीतिकाल

कैधौँ कली बेला की चमेली

केशव

शांत रस | रीतिकाल

बसंती हवा

केदारनाथ अग्रवाल

अद्भुत रस | रीतिकाल

धनि हैँगे वे तात औ मात

ठाकुर

अद्भुत रस | रीतिकाल

जासों प्रीति ताहि निठुराई

घनानंद

शृंगार रस | रीतिकाल

बाने फहराने घहराने घंटा गजन के

भूषण

वीर रस | रीतिकाल

पावस रितु बृन्दावनकी

महाकवि बिहारीलाल

शृंगार रस | रीतिकाल

माहि सरोवर सौरभ लै

महाकवि बिहारीलाल

शृंगार रस | रीतिकाल

रतनारी हो थारी आँखड़ियाँ

महाकवि बिहारीलाल

शृंगार रस | रीतिकाल

फूले आसपास कास विमल

श्रीपति

शृंगार रस | रीतिकाल

यह प्रेम कथा कहिये किहि सोँ

ठाकुर

करुण रस | रीतिकाल

आरस सोँ आरत सँभारत

ठाकुर

शांत रस | रीतिकाल

बिरहानल दाह दहै तन ताप

महाकवि बिहारीलाल

शृंगार रस | रीतिकाल

चाह भरो चंचल हमारो चित्त

पद्माकर

शृंगार रस | रीतिकाल

अधखुली कँचुकी उरोज अध आधे खुले

पद्माकर

शृंगार रस | रीतिकाल

गाहि सरोवर सौरभ लै

महाकवि बिहारीलाल

शृंगार रस | रीतिकाल

थोरी-थोरी बैस की अहीरन की छोरी संग

जगन्नाथदास 'रत्नाकर'

शृंगार रस | रीतिकाल

चहचही चुभकैँ चुभी हैँ चौँक

पद्माकर

शृंगार रस | रीतिकाल

गोकुल की गैल, गैल गैल ग्वालिन की

जगन्नाथदास 'रत्नाकर'

शृंगार रस | रीतिकाल

दुरिहै क्यों भूखन बसन

केशव

अद्भुत रस | रीतिकाल

खेलत फाग दुहूँ तिय कौ

महाकवि बिहारीलाल

शृंगार रस | रीतिकाल

पायन को परिबो अपमान

केशव

शांत रस | रीतिकाल

सौंह कियें ढरकौहे से नैन

महाकवि बिहारीलाल

शृंगार रस | रीतिकाल

बैर प्रीति करिबे की मन में न राखै सँक

ठाकुर

अद्भुत रस | रीतिकाल

आई बरसाने ते बुलाय वृषभानु सुता

देव

शृंगार रस | रीतिकाल

लाजनि लपेटि चितवनि

घनानंद

शृंगार रस | रीतिकाल

सोने की एक लता

केशव

शांत रस | रीतिकाल

हो झालौ दे छे रसिया

महाकवि बिहारीलाल

शृंगार रस | रीतिकाल

ग्रीषम प्रचंड घाम चंडकर मंडल तें

देव

शृंगार रस | रीतिकाल

आरस सोँ रस सोँ

पद्माकर

शृंगार रस | रीतिकाल

कुँजन के कोरे मनु केलिरस बोरे लाल

देव

शृंगार रस | रीतिकाल

कारे कारे तम कैसे पीतम

केशव

अद्भुत रस | रीतिकाल

मेवा घनी बई काबुल में,

ठाकुर

अद्भुत रस | रीतिकाल

जानत नहिं लगि मैं

महाकवि बिहारीलाल

शृंगार रस | रीतिकाल

कुन्दन से अँग नवयौवन सुरँग उतै

देव

शृंगार रस | रीतिकाल

रूप अनूप दई बिधि तोहि तो

ठाकुर

शृंगार रस | रीतिकाल

जिहि फन फुत्कार उड़त पहार भार

भूषण

वीर रस | रीतिकाल

केसरि से बरन

महाकवि बिहारीलाल

शृंगार रस | रीतिकाल

वंस बड़ौ बड़ी संगति पाइ

महाकवि बिहारीलाल

अद्भुत रस | रीतिकाल

बीर अभिमन्यु की लपालप कृपान बक्र

जगन्नाथदास 'रत्नाकर'

वीर रस | रीतिकाल

गोरी गरबीली उठी ऊँघत चकात गात

देव

शृंगार रस | रीतिकाल

भोर तें साँझ लौ कानन ओर निहारति 

घनानंद

शृंगार रस | रीतिकाल

जाके लिए घर आई घिघाय

महाकवि बिहारीलाल

अद्भुत रस | रीतिकाल

वहै मुसक्यानि, वहै मृदु बतरानि, वहै

घनानंद

शृंगार रस | रीतिकाल

वा निरमोहिनि रूप की रासि न

ठाकुर

शृंगार रस | रीतिकाल

आवन सुन्यो है मनभावन को भावती ने 

देव

शृंगार रस | रीतिकाल

बैठी अटा पर, औध बिसूरत

श्रीपति

शांत रस | रीतिकाल

अब का समुझावती को समुझै

ठाकुर

अद्भुत रस | रीतिकाल

ता दिन अखिल खलभलै खल खलक में

भूषण

वीर रस | रीतिकाल

छवि को सदन मोद मंडित

घनानंद

शृंगार रस | रीतिकाल

जाहिरै जागति सी जमुना

पद्माकर

शांत रस | रीतिकाल

सुघर सलोने स्याम सुंदर सुजान कान्ह

जगन्नाथदास 'रत्नाकर'

शृंगार रस | रीतिकाल

झलकै अति सुन्दर आनन गौर

घनानंद

शृंगार रस | रीतिकाल

बौरसरी मधुपान छक्यौ

महाकवि बिहारीलाल

शृंगार रस | रीतिकाल

आँगन बैठी सुन्यो

देव

शृंगार रस | रीतिकाल

मैं अपनौ मनभावन लीनों

महाकवि बिहारीलाल

शृंगार रस | रीतिकाल

बैठे भंग छानत अनंग-अरि रंग रमे

जगन्नाथदास 'रत्नाकर'

शृंगार रस | रीतिकाल

ब्रह्म के आनन तें निकसे

भूषण

वीर रस | रीतिकाल

जौँ हौँ कहौँ रहिये

केशव

शांत रस | रीतिकाल

जोबन के रँग भरी ईँगुर से अँगनि पै

देव

शृंगार रस | रीतिकाल

नील पर कटि

महाकवि बिहारीलाल

शृंगार रस | रीतिकाल



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