कुन्दन से अँग नवयौवन सुरँग उतै देव

कुन्दन से अँग नवयौवन सुरँग उतै

देव | शृंगार रस | रीतिकाल

कुन्दन से अँग नवयौवन सुरँग उतै ,
उरज उतँग धन्य प्यारो परसत है ।
सोहत किनारी वारी तन सुख सारी देव ,
सीस सीसफूल अधखुल्यो दरसत है ।
बेँदिया जड़ाऊ बड़े मोतिन सो नीकी नथ ,
हँसति हन्योननि तेँ रूप सरसत है ।
गारी गजगौनी लोनी नवल दुलहिया के ,
भाग भरे मुख पै सुहाग बरसत है ।
 

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