पुस्तक समीक्षा : बोल बच्चन लेखक : रुपेश दुबे
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इस दुनिया में तमाम ऐसे लोग हैं या हुए हैं जिनका वास्तविक जीवन प्रेरणा से भरा हुआ है, जिन लोगों ने अपने निर्धारित जीवनकाल में कल्पना से भी कहीं ज़्यादा बड़े कार्यों को अंजाम दिया है। लेकिन पर्दे पर एक व्यक्ति का जीवन अनेक भिन्नताओं के होते हुए भी प्रेरणादायी हो सकता है इस बात का आंकलन करना निश्चित तौर पर एक नई और गहरी सोच है। और इस सोच को शब्दों की तश्तरी में सजाकर आम जनमानस तक ले आना एक भागीरथ प्रयास तो है ही साथ में बधाई का विषय भी है।
दुनिया में तमाम प्रेरक वक्ता और पुस्तकों का जिस एक विषय पर सबसे ज्यादा जोर रहता है वो है सकारात्मक सोच। शिव खेड़ा से लेकर रहस्य तक सभी का सार यही है, लेकिन इस सोच को यदि कोई व्यक्ति व्यवहारिक बना पाया है तो वो रूपेश दुबे जी हैं जिन्होंने महानायक अमिताभ बच्चन के नकारात्मक किरदार की भी सकारात्मक व्याख्या इस पुस्तक में की है।
हालाँकि किताब का नाम "बोल बच्चन" है लेकिन इसका उद्देश्य बच्चन जी के व्यक्तित्व का महिमामंडन करना बिल्कुल भी नहीं है बल्कि परदे पर उनकी गलती और उनकी कमियों को उजागर कर पाठक को उससे सीखने के लिए प्रेरित करने का काम इस पुस्तक के माध्यम से हो रहा है।
पुस्तक जितनी प्रेरक है उतनी ही मनोरंजक भी है और पाठक यदि फिल्मों का शौक़ीन हो तो फिर तो सोने पर सुहागा। लेकिन पुस्तक का उद्देश्य मनोरंजन नहीं है, वो तो बस में मिलने वाली उन खट्टी-मीठी गोलियों की तरह ही है जो किसी गंतव्य तक पहुँचने तक हमें आनंद देती रहती हैं, वास्तविक उद्देश्य तो अपने समय के एक असफल व्यक्ति के महानायक बनकर हर दिल पर राज करने की कला से सबको रूबरू कराना है। इस पुस्तक में बच्चन जी के रील और रियल दोनों जीवन के बारे में भरपूर चर्चा है और दोनों ही जीवन किस तरह तमाम उतार-चढाव के बावजूद शिखर पर स्थापित हैं इसकी चर्चा भी वातावरण के अनुसार है।
बच्चन जी के बारे में हम में से बहुत लोग बहुत कुछ जानते होंगे लेकिन कुछ चीजें शायद आज भी बहुत से लोग नहीं जानते। ऐसे बहुत से तथ्यों और कथ्यों की जानकारी भी इस पुस्तक में उपलब्ध है।
फिल्मों की तरह इस पुस्तक के महानायक भी अमिताभ जी ही हैं लेकिन ये पुस्तक आपको रफ़ी के गीतों, साहिर लुधियानवी की शायरी, खैयाम के संगीत, इक़बाल के कहन, गुलज़ार साहब का लेखन, हरिवंश राय बच्चन की कविता से रूबरू तो कराती चलेगी ही, साथ में अपलो एप्पल वाले स्टीव जॉब्स का जीवन संघर्ष, फौजा सिंह की जिजीविषा, के ऍफ़ सी वाले कर्नल हरलाण्ड डेविड सैंडर्स की प्रेरक और कभी हार न मानने वाली जीवन यात्रा से भी रूबरू कराती चलेगी।
क्रिकेट से प्रेम करने वाले लोगों के लिए भी इस पुस्तक में उनके नजरिये का बहुत कुछ प्रेरक है, क्रिकेट के भगवान सचिन तो इस किताब में दूसरे नायक की तरह ही मिलते हैं, साथ में धोनी की सफलता और सौरव गांगुली और इमरान खान के किस्से भी देखने को मिलते हैं। लेकिन इन सब नामों के मूल में केवल खेल नहीं है बल्कि एक प्रेरणा है जिसका आभास पाठक को जगह-जगह होता है।
पुस्तक में उदाहरण के माध्यम से पाठक को जोड़ने का एक सार्थक प्रयास हुआ है, कई उदाहरण तो लेखक के बेहद करीबी लोगों के भी हैं, वैसे लोग हम सबके आसपास भी होते हैं लेकिन हम लोग उन्हें उतना महत्व नहीं देते। पुस्तक पढ़ते समय ऐसे बहुत से लोगों की छवि स्वतः ही आँखों के सामने आने लगती है।
मेरी सीमित समझ में ये इकलौती पुस्तक है जिसमें बुद्ध, कबीर, रहीम, तुलसीदास, ग़ालिब और हेनरी डेविड थोरो एक साथ उद्धृत हैं। इस वजह से ये पुस्तक प्रेरक होने के साथ-साथ ज्ञानवर्धक भी हो जाती है और साहित्य प्रेमी वे लोग जिनकी बच्चन जी के व्यक्तित्व में कोई खास रूचि नहीं है वो इस पुस्तक को पढ़ते समय जुड़ा हुआ महसूस कर पाते हैं।
एक बड़ी अनोखी बात जो इस प्रेरक पुस्तक का हिस्सा है, भारत में सेलफोन अथवा मोबाइल के जन्म से लेकर उसके हर हाथ में पहुँचने का यात्रा वृतांत भी इस पुस्तक में है जिसे बड़ी ही सफाई से पुस्तक के मूल विषय के साथ जोड़ दिया गया है।
सोशल मीडिया प्लेटफार्म "इंस्टाग्राम" के बनने की कहानी, "के ऍफ़ सी" के उद्भव की कहानी, शाहरुख़ और आमिर के किस्सों से लेकर चेतन भगत और अमीश त्रिपाठी के स्थापित होने की बात ये सबकुछ एक जगह मिलकर इस पुस्तक को पूर्ण और पठनीय बनाती हैं।
कुल मिलाकर इस प्रेरक पुस्तक का सार ये है कि जिन लोगों की चमक-दमक और ऐशो आराम भरी ज़िन्दगी से हम प्रभावित और आकर्षित होते हैं उनका जीवन भी हम आम लोगों की तरह ही उतार-चढ़ाव भरा ही होता है लेकिन वे लोग उन समस्याओं से डरने कि बजाय उनसे लड़ना शुरू करते हैं और जीतकर हम सब के लिए प्रेरणा स्रोत बन जाते हैं।
फ़िल्मी डॉयलोग्स से बना पुस्तक के हर भाग का शीर्षक और कौन बनेगा करोड़पति के बच्चन जी के अंदाज़ में हर पाठ के अंत में एक सीख पुस्तक को और आकर्षक बनाती है।