पुस्तक समीक्षा : उसके हिस्से का प्यार लेखक : आशीष दलाल

कहते हैं कि समाज-शास्त्र के भारी भरखम पोथे पढ़े बिना भी यदि समाज की समझ बढ़ानी हो तो समकालीन कहानियाँ और उपन्यास सबसे अच्छा माध्यम हो सकते हैं I ये कहानी संग्रह "उसके हिस्से का प्यार" बहुत हद तक इस कथन को सिद्ध करता है I कहानी का कोई भी चरित्र ऐसा नहीं है जो समकालीन समाज में आपसे परिचित न हो,और जबकि ये कहानी-संग्रह मानवीय रिश्तों और प्रेम पर आधारित है तो मानव-मन का जो भाव-प्रवाह कहानियों में प्रवाहित हो रहा है एक संवेदनशील पाठक मन में भी उसके रेशे बड़ी गहराई तक बड़ी आसानी से उतरने में सक्षम हैं।

कहानियों में शब्दों का जितना सहजता और सौंदर्यपूर्ण तरीके से चयन हुआ है उतनी ही सहजता से पाठक कहानी को पढता और उसमे रमता चला जाता है I कहानी के संवाद पात्रों को हर हाल में काल्पनिक या आभासी होने से बचा लेते हैं तथा पाठक बड़ी आसानी से स्वयं को पात्रों से जोड़ लेता है I

कहानी बहुत ही संयमित और सजीव तरीके से आगे बढ़ती है जो विषय पर लेखक की गहरी समझ का एहसास दिलाता है। किसी भी कहानी के कथानक में भटकाव कि कोई गुंजाईश लेखक ने रखी ही नहीं है।

"उसके हिस्से का प्यार" कहानी संग्रह को पढ़ते हुए पाठक मानवीय रिश्तों और प्रेम की सामाजिक समझ बढ़ाते हुए एक भावनात्मक यात्रा करता चलता है तथा कहानियों का क्रम इस यात्रा में कभी सुखद तो कभी विशादपूर्ण पड़ाव की तरह प्रतीत होता है।

लेखक ने इस कहानी-संग्रह के माध्यम से आज के दौर के हर उस रिश्ते की परतें खोलीं हैं जो कहीं समस्या तो कहीं सुकून की तरह महसूस हो रहे हैं। पारिवारिक और व्यक्तिगत रिश्तों का एक बृहत् संसार इस कहानी संग्रह में अपने अनुपम रंग के साथ दृष्टिगोचर होता है I

भारतीय समाज में स्त्री का कोमल मन उसे हर रिश्ते की धुरी होती है लेकिन उसकी नाजुकता को उसकी कमजोरी समझने का सिलसिला चिरकाल से अनवरत जारी है I प्रस्तुत संग्रह की कई कहानियाँ स्त्री की कोमल मनःस्तिथि को अत्यंत भावुक और सजीव स्वरुप में बयाँ करती हैं। कथित स्त्रीगत समस्याओं जैसे मासिक धर्म इत्यादि के अंधविश्वासों का वर्णन भी लेखक ने बड़ी ही सुगमता से किया है जो पाठक के मनमस्तिष्क को झकझोर देने में तथा पुनर्विचार के लिए उत्प्रेरित करने में सक्षम है I

प्रेम की परिभाषा रिश्तों के दरम्यान बदलती रहती है, कहीं वो ममता कहीं स्नेह तो कहीं इश्क़ ये कई नाम संबंधों के आधार पर प्रेम को परिभाषित करते हैं लेकिन इन सबके मूल में एक जुड़ाव है जिसके नाम तो अलग-अलग हैं लेकिन सबका एक ही उद्देश्य रिश्तों में भावनाओं का एकाकार हो जाना ही है I और यही इस कहानी-संग्रह का मूल है।

संग्रह की पहली कहानी "एक रात की मुलाकात" में युवावस्था के असमंजस भरे पलों का अत्यंत सजीव चित्रण है। भावों को शब्दों में बड़े ही सहज तरीके से ढाला गया है, कहानी का एक अंश जब रागिनी शालीन से कहती है- ”एक स्त्री के जीवन में अपने पति को खो देने से ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण और दुखद दूसरा पल नहीं होता है,फिर मैं तो अपना पति और प्रेमी दोनों ही खो चुकी हूँ”, ये एक वाक्य रागिनी के खालीपन को बयाँ करने के लिए पर्याप्त है I

"तेरे कहने का क्या मतलब है, किसी को पसंद कर लिया है क्या", ये सार्वभौमिक वाक्य हर माँ अपने जवान होते बेटे या बेटी से पूछ ही लेती है, संग्रह की दूसरी कहानी लव मैरिज एक इस बात को समझाते हुए आगे बढ़ती है कि शारीरिक रूप से अक्षम होना प्रेम में बाधक नहीं है बल्कि प्रेम जैसे शब्द की सार्थकता का परिचायक है। थोड़ी सी पारिवारिक समझ से घर कैसे खुशियों से भर जाता है इसका एक अच्छा उदाहरण कहानी में देखने को मिलता है।

नौकरी, परिवार और जिंदगी की बाकी आपा-धापी में बूढ़े माँ-बाप के लिए समय निकालना और उनके साथ तारतम्य बिठाना आज के समय में सभी परिवारों के लिए बहुत जटिल चुनौती बन गया है। आधुनिकता से गुजरता कोई भी समाज ऐसा नहीं है, जहाँ यह समस्या न हो। इसी विषय के इर्द-गिर्द बुनी गई एक बहुत ही संवेदनशील कहानी है ‘कर्ज', कहानी में पैरालिसिस पीड़ित बूढ़े बाप की वजह से बेटे-बहु की नोकझोक को बड़ी ही संजीदगी से प्रस्तुत किया गया है और अंत में माधुरी का ये कहना कि "एक सम्बन्ध की ख़ुशी के लिए दूसरे सम्बन्ध को दावं पर नहीं लगाया जाता" एक सामंजस्य पूर्ण जीवन जीने की कला सिखाता है I

पति-पत्नी के बीच के अंतरंग पलों का अश्लील हुए बिना सजीव वर्णन करना लेखक की सधी हुई सोच और कलम दोनों से परिचित कराता है, साथ ही पैठ जमा चुकी मानसिक कुंठाओं को विश्वास से कैसे जीता जा सकता है इसका सुन्दर उदाहरण कहानी "तुम्हारा हिस्सा" में देखने को मिलता है। पति-पत्नी के बीच की बातचीत का इससे जीवन्त चित्रण मुश्किल से देखने को मिलता है।

प्रेम की भाषा मूक होती है शीर्षक कहानी "उसके हिस्से का प्यार" इस कथन को सिद्ध करता चलता है, ममत्व बालमन को महज ममत्व से जीता जा सकता है इसका बेहतर उदाहरण इस कहानी में देखने को मिलता है।

एक कहानी "अंतिम संस्कार" समाज के एक प्रचलित स्वरुप से परिचित कराते हुए पितृप्रधान समाज को एक चोट भी करती चलती है, जब रमा रामचरण के आरोपों का जवाब देते हुए कहती है "बच्चों को संस्कार देना केवल माँ का ही काम है क्या? बच्चे अच्छा काम करें तो नाम बाप का हो और कुछ गलत हो तो सारा दोष माँ के सिर"I

प्रत्येक कहानी के संवाद में एक मार्मिक अंश कहीं ना कहीं दिख ही जाता है, जो पाठक के अंतर्मन को छूकर उसे कहानी का हिस्सा बनने को मजबूर कर देता है, जैसे "जीवनदान" कहानी में पहले अपने पति तथा बाद में अपने पुत्र को खो चुकी डॉ नयना शकुबाई के समझाने पर बोलती है की "सबकुछ तो चला गया मौसी अब किसके लिए हिम्मत रखूँ"

कहानी संग्रह "उसके हिस्से का प्यार" की सफलता को एक वाक्य में बयाँ करना हो तो ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि "कहानी पढ़ते-पढ़ते पाठक कब पात्र बन जाता है उसे इसका आभास भी नहीं होता"I

Navneet Pandey

नवनीत पांडेय पेशे से अभियंता हैं एवं हिंदी भाषा और साहित्य से विशेष लगाव रखते हैं। कविताएँ लिखने में विशेष दिलचस्पी रखने वाले नवनीत देश-विदेश के समकालीन मुद्दों पर अपनी बेबाक राय रखते हैं।

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