चाह भरो चंचल हमारो चित्त पद्माकर 

चाह भरो चंचल हमारो चित्त

पद्माकर  | शृंगार रस | रीतिकाल

चाह भरो चंचल हमारो चित्त नौल बधू ,
तेरी चाल चँचल चितौनि मे बसत है ।
कहै पदमाकर सुचँचल चितौनिहु ते ,
औझकि उझकि झझकनि मे फसत है ।
औझकि उझकि झझकनि ते सुरझि वेस ,
बाहीँ की गहनि माँहि आइ बिलसत है ,
बाहीँ की गहनि ते सुनाही की कहनि आयो ,
नाहीँ की कहनि ते सुनाहीं निकसत है ।
 

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