फूले आसपास कास विमल श्रीपति

फूले आसपास कास विमल

श्रीपति | शृंगार रस | रीतिकाल

फूले आसपास कास विमल अकास भयो,
रही ना निसानी कँ महि में गरद की।
गुंजत कमल दल ऊपर मधुप मैन,
छाप सी दिखाई आनि विरह फरद की॥
'श्रीपति' रसिक लाल आली बनमाली बिन,
कछू न उपाय मेरे दिल के दरद की।
हरद समान तन जरद भयो है अब,
गरद करत मोहि चाँदनी सरद की॥

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